Nawada News : मगध के सांस्कृतिक इतिहास में मगध सम्राट राजा जरासंध के बड़गर महत्व हे : राम रतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर'
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मगध के सांस्कृतिक इतिहास में मगध सम्राट राजा जरासंध के बड़गर महत्व हे : राम रतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर'
नवादा लाइव नेटवर्क।
ई गुनी संस्कृति मनुष्य के सामान्य से विशिष्ट बना दे हे माने उत्तम कृति या काम जे उपलब्धि भी मानल जा हे संस्कृति के अंग मानल जा हे। कोय स्थूल पदार्थ से सूक्ष्म तत्व निकालल जा हे आहे क्रिया के संस्कृति के मूल भाव जानल जा हे। संस्कृति सभ्यता के सहारे अउ रूपमान हो जाहे कारण सभ्यता या सभ्य आचरण से व्यक्ति के पहचान सभ्य आउ सुसंस्कृत रूप में होवो हे। संस्कृति एक सामाजिक विरासत हे, जे संचय से विकसित होवो हे। शिक्षा दीक्षा आउ रहन-सहन के स्तर आउ परम्परा के पालन से संस्कृति के रूप आउ सुथर समझ में आवे वाला हो जा रहे।
मगध के संस्कृति के विशेषता हे ऐकर उदार दृष्टिकोण अउ समभाव सबसे प्रेम के जीवन पद्धति के विस्तार अउ ई विस्तार के चरचा मगध के संबंध में लिखल गेल ग्रंथ सबके विचार से स्पष्ट हो जा हे।
मगध के संस्कृति के स्वरूप के दर्शन पत्थर कालीन युग से होवो हे। जब आदमी गुफा में निवास करो हलाऽ तब उनखर आचरण परिवार प्रेम से स्पष्ट करो हके कि गुफा में कारीगरी हे अउ ओकर निर्माण कुशल वस्तुकार कैलका हे। मगध के बराबर पहाड़ के शोणितपुर मानल गेल है। महाभारत युद्ध के बाद कृष्ण के पोता अउ वाणसूर के पुत्री के सचकोलवा प्रेम गाथा ओकर सभ्य जीवन के वृतांत बनल है। संत घर अउ सतघरवा के साधक के स्थान मानल जा हे।
मगध के योगिया भवन गुफा (जमुई) के कईगो विद्वान भगवान् महावीर स्वामी के जनम स्थान मानो हका ई बात के अलावे योगिया भवन के भव्य स्वरूप ओकर वैभव से भरल अतीत के साक्षी हे अउ उदाहरण हे कि पहिले भी मगधवासी घर बनावे के परियास कैयलका हल।
राजगीर के स्वर्ण भंडार (नालन्दा) गुफा से स्पष्ट होवे हे कि लोग अप्पन समान के सुरक्षा करे के उपाय करो हलाऽ। गुफा सबके चरचा से ऐगो अउ बात स्पष्ट हो जा हे कि मगध में पत्थर कालीन सभ्यता के मूक दर्शन गुफा अउ पत्थर के औजार करावो हे।नवादा के सीतामढ़ी गुफा के बनावट के इतिहासकार कोय शक्तिशाली व्यक्ति के द्वारा बनावल मनो हका । लोकमान्यता है कि निर्वासन के समय जगत जननी सीता जी, जे भगवान राम के धर्मपत्नी हलथीन ऐतय समय गुजरालथीन हल अउ ऋषि बाल्मीकि उनखर देख-रेख कैयलथीन हल मानल जा हे लव अउ कुश के जनम ऐतैय ऐ हे गुफा में होल हल।
कुछ इतिहासकार मानो हथीन कि आर्य जाति के प्रवेश बाद में मगध में होल हे मुदा रामायण काल खास करके उत्तर रामायण से स्पष्ट होवो है कि लव अउ कुश प्रभाव शाली अठ शक्ति सम्पन्न हला। मगध के सांस्कृतिक इतिहास के ई विडंबना ही मानल जा हे कि ऐकरा में क्रमबद्धता के अभाव हे मुदा जता इतिहास के पन्ना गुम हो जा हे ओता पुरातात्वीक साक्ष्य ओकर वैभव से भरल अउ सूसंस्कृत जीवन के दर्शन करावो हे।
मानल जा हे मगध के पहिला राजा भगवान राम के पुत्र जो ऋषि वाल्मीकि के साधना से उत्पन्न होला हल कुश हथीन जे मगध के पहिला आर्य राजा मानल जा हथीन रामायण के कथा में भगवान राम के गुणगान है से गुनी कुश के शक्ति सम्पन्न राज के चरचा कम हे मुदा मानल जा हे कि कुश के पोता अमूर्तरयस के पुत्र गय आमूर्त रयस काशी के पूरब गंगा अउ सोन नदी के बीच जे पहिले धर्मारण्य के नाम से प्रसिद्ध हल अठ बाद में मगध कहलाल में पहिला आर्य राज्य स्थापित कैयलका हला मानल जा हे, गया चक्रवर्ती राजा होला हल अउ उनखर राज नगर गया हला।
मगध के सांस्कृतिक इतिहास से स्पष्ट हे कि प्रारम्भ से ही मगध के राजा शक्ति सम्पन्न होला हे आउ आर्य संस्कृति अउ सभ्य जीवन विधान के दर्शन लगातार होवो हे।
रामायण में वशिष्ठ सुमन्त से कहलथीन हल कि यज्ञ के निमंत्रण मगध देश के रजा के भी देल जाय काहे कि तहिना मगध के राजा सब शास्त्र के ज्ञाता हलथीन अउ उनखर वेद-पुराण के ज्ञान के प्रभाव हल। ई बात के विस्तार से चरचा आदि काण्ड के 13वां सर्ग में कयल गेल हे। जब केकैयी कोप भवन में चल गेली हल आउ नाराज भूखल सूतल हली हल तब उनखा मनावे के परिवास कैंपल जा रहल हल ओकरे क्रम में राजा दशरथ मगध में बनावल सब ढंग के कलात्मक वस्तु देवे लेल निवेदन कैयलथीन हल।
रामायण के दून्नू वृतांत के अलावे जनकपुर जाय के समय सोन नदी के किनारे से राम अउ लक्ष्मण के गुरु वशिष्ठ मगध देश देखेयलथीन हला
रामायण के चरचा से स्पष्ट होवो हे कि भगवान् राम के जमाना में मगध में कलात्मक वस्तु बनावल जा हल जेकरा प्राप्त करे लेल राजा अ महाराजा भी कोशिश करो हला रामायण के कथा से ऐ हो स्पष्ट होवो हे कि मगध के राजा ज्ञानी हला आउ वेद पुराण के ज्ञाता हला कालिदास रघुवंशम् ( 1.31 ) में रघु के पिता दिलीप के शादी मगध नरेश के कन्या सुदक्षिणा से होवे के बात लिखलका हे ऐकरा से साफ स्पष्ट हे कि मगध आर्य जाति के पुरान स्थान हल। संभव हे ऋग्वेद में कीकट देश के चरचा कोय आज स्थान विशेष के लेल कयल गेल हे मुदा वायु पुराण के व्याख्याकार मगध के ही कीकट देश; माने कीड़ा-मकोड़ा के रहे के स्थान मानो हथ । वायु पुराण में गया, पुनपुन नदी, चवन मुनि के आश्रम आउ राजगीर के पुण्य के स्थल मानल गेल हे।
ब्रह्म पुराण के के अनुसार सम्राट पृथु ही भूमि के दोहन आज जल संचय के ज्ञाता हलधीन, अप्पन प्रशंसा में मगध के गवैया के गीत सुनके उनखा मगध- प्रदेश दान में दे देलथीन हल। मनु संहिता में मगधवासी सबके भ्रमणशील आठ गायक अउ वाणिज्य में संलग्न कहल गेल हे। तैत्तिरीय ब्राह्मण (3,4,1,1,) में कहल गेल हे कि मगधवासी अप्पन तेज आवाज के कारण प्रसिद्ध हला। पंचविश ब्राह्मण में मगध के निवासी ब्रात्य सबके विस्तार से चरचा कैयल गेल हे पंचविश ब्राह्मण में (17-4) ब्रात्य सबके विशद वर्णन कैयल गेल हे ब्रह्म पुराण में मनुसंहिता में अउ तैत्तिरीय ब्राह्मण में कहल गेल हे कि मगधवासी अदीक्षित होवे के वादो दीक्षितवाय माने कम पढ़े लिखे के बादो ज्ञान के बात करो हलथीन आउ कठीन शब्द के सुगम उच्चारण में मगधवासी के महारथ प्राप्त होल हल।
महाभारत में मगध अउ मगध देश के राजा आउ यहां के सांस्कृतिक जीवन के विस्तार से चरचा कयल गेल हे। सबसे पहिले वासुदेव श्री कृष्ण अर्जुन अउ भीम से कहलथीन हे! पार्थ मगध के राजनगर गिरिब्रज सुन्दर नगर हे, पांच पहाड़ से घिरल, ई राजनगर के रक्षा के लेल पांच पहाड़ तन के खड़ा हके, यहाँ के तालाब में पानी भरल हे अउ गऊ शक्तिबर्द्धक दूध दे हे, सबसे बड़गर बात हे कि मगध देश के वासी आपस में मेल से रहो हथा।
महाभारत के वन पर्व में लिखल हे कि भगवान् भृगु के पुत्र जमदग्नि के पांच पुत्र में सबसे बड़ा वसु हलथीन अउ सबसे छोटा परशुराम जी हलथीना महाभारत, भागवत पुराण अउ वायु पुराण में लिखत हे क बसु वंशगर राजा होलथीन हल अउ ओहे मगध देश के राजधानी वसुमति जे गिरिब्रज अउ राजगीर के नाम से प्रसिद्ध होत हे, वसोलथीन ला पुरोहित ब्राह्मण श्रेष्ट गुरू वशिष्ट के सौ बेटा के क्षत्रि मार देलक मुदा ऊ प्रतिरोध जय कैलयका मुदा परशुराम अप्पन पिता जमदग्नी के मीत के बदला क्षत्रिय के निखत्री करके कैलयका हल मगध के संस्कृति में शस्त्र अउ शास्त्र दुन्नु के महत्व हे अंदर भीक्षाटन के विरोध हे। कमा के खाय के संस्कार हे। आश्रित के भोजन करावे के संस्कार हे ई गुनी मगध के संस्कृति में आगत के स्वागत के भाव अउ आश्रित पर दया के भाव भी हे। ई संस्कृति के अलग पहचान हे। ई अय तो क्षत्रिय संस्कृति हे आउ जय तो पुरोहित ब्राह्मण संस्कृति हे। ई कृषि संस्कृति हे। कृषक दयालू होवो हथ अउ खेती के रक्षा के लिए कठोर भी होवो हथ इ उनखर परम्परा गत व्यवहार हे जेकरा ब्रह्मर्षि संस्कृति मानल जा सकल है। ई कोय जात के बात जय है।
श्रीमद् भागवत् पुराण में राजा सबके अउ राजा के व्यवस्था के चरचा हे। ओहे चरचा में मानल गेल हे वसु के पुत्र बृहदर्थ मगध देश के प्रतापी राजा हलथीन महाभारत के अनुसार ऊ तीन अक्षौणि सेना के मालिक हलधीन रूपमान, धनमान अउ यज्ञिक बृहदर्थ के शादी काशी राज के दू पुत्री के साथ होल हल मुद्दा विषय सेवन करत र दिन बीतला के बादो कोय पुत्र नाय होला के कारण बृहदर्श परेशान रहो हलथीन । आगे सभा पर्व के लम्बा कथा में कहल गेल हे कि एक दिन गौतम कासीवन के पुत्र महात्मा चण्डकौशिक तपस्या से उपराम के बाद वसुमति पधरालथीन आउ राजा के आम के बगीचा में बैठ गेलथीन । व्याकुल मगध नरेश चण्ड कौशिक के सत्कार में लग गेलथीन तब प्रसन्न होके महात्मा चण्ड कौशिक आम के ऐगो फल राजा के देलथीन आउ दून्नू रानी के खिलावे के निर्देश देलथीन । आगे के कथा के अनुसार आम फल खाय के बाद दून्नू रानी के गर्भ से मांस के अलग-अलग लोथड़ा पैदा भेल जेकरा जंगल में फेंक देल गेल मुदा जरादेवी नामक ऐगो देवी जेकरा कुछ पुराण में राक्षसी कहल गेल हे मुदा ऊ देवी मगध नरेश के भक्त हलथीन जे गुनी दून्नू लोथड़ा के जुड़ल रूप के साथ सुन्दर अउ स्वस्थ्य बालक राजा के सौंप देलधीन, ओहे बालक जरासंघ नाम से प्रसिद्ध हो गेला अउ आगे चलके संसार के पहिला सम्राट भी ओहे होला ।
वसु के वंशज बृहदर्थ अउ उनखर पुत्र जरासंघ वासुदवे श्री कृष्ण के भागवत धरम, जेकर अनुसार जे जाति के लिए जे काम तय हे क जाति के लोग के ओहे काम करे लेल बाध्यता के विरोधी हलथीन दुसरका बात वासुदवे श्री कृष्ण क्षत्रिय जाति के पांडव पुत्र के युद्धिष्ठिर के राजाधिराज बानवे के जोड़-तोड़ में लगल हलथीन जे जरासंघ के रहते संभव जय हल।
महाभारत के सभा पर्व में वासुदेव श्री कृष्ण अप्पन नीति स्पष्ट कैयलधीन अउ सामने होला के बाद श्री कृष्ण जरासंध से बोललखीन - राजन तो तो क्षत्रिय के बलिदान करे के निश्चय कैयला हे मुदा हम क्षत्रिय जाति के अभिबृद्धि के लेल तोरा बध करे लेल अइलूं हे, तो घमण्ड में हका कि तोहरा जैसन योद्धा क्षत्रिय जाति में जय हे, तोर भ्रम हे।
वासुदेव श्री कृष्ण के कथन से स्पष्ट हो जा हे कि जरासंध क्षत्रिय नय हला आउ ब्राह्मण होके राजा हलाऽ ई बात भागवत धरम के प्रचारक वासुदेव श्री कृष्ण के पसन्द जय हल, काहे कि श्री कृष्ण सिर्फ क्षत्रिय के राजा होवे के अधिकारी मानो हलाऽ अठ बिना कोय विरोध के ऊ कहलथीन कि हम क्षत्रिय जाति के अभिवृद्धि चाहो ही मुदा ब्रह्मर्षि वसु, बृद्रथ के वंशसज जरासंध भगवान् विष्णु के दस अवतार में पहिला मानव योनि के अवतार भगवान् परशुराम के राह पर चले वाला हलाऽ अठ उनखर में ब्रह्मषि खेती करो हलथीन अप्पन आश्रित के भोजन देवे वाला हलधीन मगध के जानल मानल ब्राह्मण अरिस्टनोमि के कथन हे- हम सदा सत्य बोलो ही अठ सदा अप्पन धरम के पालन करो ही ई गुनी राज मौत के भय नय हे अउ हम ब्राह्मण के कुशल के कामना करो ही; हम उनखर अच्छा काम जॅकरा शुभ काम मानल जाहे ओकर चरचा करोही केकरो दोष के बखान नय करोही हम अतिथि के आदर करो ही अउ हमनी पर जिनखा पालन के भार हे उनखा पूरा भोजन करावो ही हम अन्न दाता ही अउ सबके खिलैला के बाद हम भोजन करोही। हम सदा शाम, क्षमा तीर्थ सेवन अउ दान देवे वाला ही ई गुनी हम पवित्र देश के निवासी ही ।
अरिष्टनोमी के कथन से स्पष्ट हो जा हे कि जरासंध भी दान देवे वाला ब्राह्मण हला अउ मगध में काम (परिश्रम करके खेती अउ उद्योग करके परिवार चलावल जा हल अउ ई गुनी मगध वैदिक संस्कृति के भूमि हल अउ महज जाति के नाम पर राजा होवे के परम्परा के विराध यहां होल हल।
महाभारत में अउ भागवत पुराण में जे लिखल हे ओकरो से साफ हो जा हे कि जरासंध वैदिक देवता सबके मानो हलाऽ जबकि श्री कृष्ण वैदिक देवता के शक्ति कम करके उनखर पूजा रोकवा देलथीन हल।
महाभारत के सभा पर्व में जरासंध वध अठ बंदी क्षत्रिय राजा के मुक्ति पर वैशम्पायन जी जनमैजय से कहलथीन कि श्रीकृष्ण जी जरासंध के ध्वजा मोडत दिव्य रथ जोतलथीन ऊ रथ मे नाम "सौदर्यवान" हल जेकरा पर एक साथ दू महारथी बैठके युद्ध कर सकोऽ हलथीन । ई रथ इन्द्र ने वसु को, वसु ने बृहदर्थ को, अउ बृहदर्थ अप्पन बेटा जरासंध के देलथीन हल। ई बात से अउ साफ हो गेल कि राजा जरासंघ ब्रह्मर्षि हलयोन अ मगध के संस्कृति में शाम, दाम अठ क्षमा के बड़गी महत्व हल।
महाभारत काल में मगध कल अठ बल में सबसे आगे हल अ जमाना से कलात्मक काम मगध में हो रहल हल जेकरा से स्पष्ट ह हे कि मगध के लोग जमाना से शान्त स्वभाव अउ विचारवान हला तभी तो क्षत्रिय जाति के राजनगर हस्तीनापुर पारिवारिक युद्ध के केन्द्र हो गेल अउ महज राजा होवे लेल महाभारत युद्ध भेल। ऊ कतना भयानक हल: मुदा मगध के वंशगर जरासंध के राज परिवार में कभी राजा होवे लेल युद्ध नय भेल अउ संसार के इतिहास में ब्रह्मर्षि राज परिवार जरासंध से लेके सहदेव अउ रिपुंजय तक नौ सौ चालीस साल तलक राज कैयलथीन हल। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार जरासंध के बाद ई वंश के 29 राजा होलथीन हल मुदा अन्य पुस्तक के अनुसार ई वंश के चालीस राजा होलथीन अड एक हजार साल तलक महाभारत युद्ध के बाद भी ई वंश के शासन चलल ।
ई काल में मगध क्षेत्र में कोय पहचान रखे वाला पुरोहित ब्राह्मण के दर्शन नय होवो हल अठ वासुदेव कृष्ण के भागवत धरम कि ब्राह्मण के काम वेदाभ्यास अउ राजा के आज्ञा के पालन के खिलाफ वैदिक व्यवस्था कि ब्राह्मण भी राजा हो सको हथीन अउ क्षत्रिय भी सेवा के काम कर सको हथीन लागू हल अब गैर क्षत्रिय भी राजा हो सको हलाऽ अउ गैर ब्राह्मण भी वेदाभ्यास कर सको हलथीन ।
महाभारत युद्ध के बाद के काल के राज परिवार के वंशसज में केवल वसु, बृहदर्थ अउ जरासंध के वंशसज के राज चलल अउ सबके सब प्रजा पालक राजा होलथीन हल कृषि पशुपालन के विकास खूब हॉल हल अउ कृषक के अन्नदाता मानल जा हल ई वंश के राजा के राज में समता मूलक समाज के रचना भेल अउ वैदिक देवता सूर्य अउ इन्द्र के पूजा होवो हल पुरा मगध देश जेकर क्षेत्र ऊ जमाना में आर्यवर्त के तीन हिस्सा हल ओकरा में सूर्य, इन्द्र अउ शिव के पूजा होवो हल अउ कईगो सूर्य मन्दिर के निर्माण होल हल।
राजा जरासंध के वंशसज भूपति होलथीन अठ ग्रामीण संरचणा के नया आयाम मिलल । ई काल में ब्राह्मण धन अठ शासन लेल काम करते रहला से गुनी सांस्कृतिक विकास के काम रूक गेल अउ पुरोहित ब्राह्मण ग्रंथ सबमें मगध अउ मगध के राजा सबके निन्द कैयल गेल हे। ई शासन में यज्ञ में नाम पर अउ कर्म काण्ड के नाम पर जे धन अउ पशुबल समाप्त हो रहल हल ऊ भी रोकल गेल ऐ हे कारण हे कि मगध के भदेश मान भद्दा देश तलक कहल गेल हे मुदा वैदिक परम्परा के ई सबसे महत्वपूर्ण अउ पावन धरती हे।
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