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Teachers Day : शिक्षक दिवस पर विशेष : शीश दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान...

   


शिक्षक दिवस पर विशेष : शीश दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान...

नवादा लाइव नेटवर्क।

शिक्षा जगत के महान गुरु एक महान दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक साहित्यिक अभिरुचि के धनी व्यक्ति थे। उनका लघुकथा संग्रह गल्लिपका नाम से सन 1956 ईस्वी में इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था। यह लघु कथा ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा व पिपासा के कथ्य को लेकर चली है। जिसमें शिष्य ऋजिस्वान गुरु अत्रि के सम्मुख उपस्थित होकर अपनी समस्याओं के समाधान के साथ बोध और ज्ञान चाहता है का भाव था। 

गुरु अत्रि के आश्रम में रहकर शिष्य ऋजिस्वान ज्ञान बोध की बात सुनकर वैसा ही आचरण कर के अंतर में प्रकाश भर लेता है। ज्ञान की व्यवहारिक परीक्षा लेने के लिए जब वह संसार सागर में उतरता है तो उसका सारा ज्ञान छूमंतर हो जाता है। यह निराश भाव से पुनः गुरु आश्रम में लौट आता है और गुरु के सामने अपनी समस्या रखता है। गुरु मुस्कुराकर मौन रह जाते हैं। ज्ञान की सैद्धांतिक प्राप्ति और आदर्श की बातें लेकर उसका संसार के लोगों के साथ मध्य व्यवहार के प्रयोग करने में बहुत कठिनाई है।

गुरु का ज्ञान प्रयोग स्थल समाज के साथ, परिवार के साथ और व्यवस्था के साथ समन्वय ले ही स्पष्ट होता है कि ज्ञान के साथ विवेक का कितना महत्व है। प्राचीन भारतीय संस्कारों में माता-पिता के बाद सबसे अधिक महत्त्व गुरु या ज्ञान दाताओं का सदा रहा है। संत तुलसीदास रामचरितमानस में लिखते हैं_

प्रातः काल उठ जागे रघुनाथा।

मात पिता गुरु नवाही माथा।।

गुरु गृह गए पढ़न रघुराई।

अल्प काल विद्या सब पाई।।

अर्थात प्रातः जागने के बाद भगवान राम और उनके भाई सर्वप्रथम माता-पिता को प्रणाम करते हैं। उसके बाद गुरु को प्रणाम करते हैं। दूसरे पंक्ति में स्पष्ट करते हैं कि गुरु गिरीश जाने के बाद कम समय में शिक्षा पूर्ण करते हैं। आज के 600 साल पूर्व युग प्रवर्तक संत और महाकवि कबीर दास हुए थे उनके दोनों और पदों आदि की रचनाओं में जीवन को सही तरह से जीने की प्रेरणा मिलती है।

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय।

बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताए।।

यह तन विष की बेलरी गुरु अमृत की खान।

शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।।

अर्थात अगर एक साथ गुरु और गोविंद दोनों खड़े हो तब सबसे प्रथम गुरु को प्रणाम करना चाहिए। दूसरे दोहे में तन को विश भरा मानकर और गुरु अमृत का खान जानकर अगर शीश अर्थात सर देकर गुरु मिल जाए तो जान भी सस्ता है।

उपरोक्त कवियों संतो और दार्शनिकों के कथन के अनुसार व्यक्ति के जीवन में सच्चे ज्ञानी गुरु का महत्व बहुत है। इस कसौटी पर वर्तमान शिक्षा प्रणाली और परीक्षा प्रणाली के कुछ तथ्यों को जानना भी सही होगा।

अंग्रेजों ने देश को गुलाम बनाया भारतीय संस्कार भाव की शिक्षा प्रणाली समाप्त कर दी गई। इस संदर्भ में राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर की कृति शहीद हिंदी खंडकाव्य में अंकित है।

कुछ लोग विदेशों में पढ़ते थे।

पढ़ते बहुत कम गुनते थे।।

विदेशी हो गया ताना-बाना।

भूल गए सब बात पुराना।।

माईकिले की शिक्षा प्रणाली। 

बिना भात के खाली थाली।। 

संदर्भ गुरु का है। पूर्व के गुरु और आज के गुरु में भेद है। यही कारण है कि गुरु गरिमा के सामने प्रश्नचिन्ह हर मोड़ पर लगा है या व्यवस्था दोष को भी उजागर कर रहा है।

 बिहार में पिछले चालीस साल में शिक्षा और परीक्षा दोष के कारण उदाहरण स्पष्ट कर रहा है। प्रधानाध्यापक पद के लिए प्रायः स्कूल व्यवस्था में सीनियर और जूनियर को लेकर विवाद होता रहा है। इस संदर्भ में बिहार सरकार ने 6421 प्रधानाध्यापक पद के लिए परीक्षा की व्यवस्था की। संभव है इसके लिए अनुभवी शिक्षकों को परीक्षा में भाग लेने का पात्र माना गया है। इसमें भाग लेने वाले अधिकांश शिक्षक मैट्रिक से लेकर स्नातक तक शिक्षा प्राप्त हैं, और 10 साल का शिक्षण का अनुभव भी रखते हैं। 

यह विडंबना पूर्ण स्थिति है कि प्रधानाध्यापक पद के 6421 स्थान के परीक्षा में भाग 13 हजार शिक्षकों ने लिया। उसमें मात्र 421 परीक्षा में सफल सफल रहे। शेष असफल हो गए। इसमें बिहार की शिक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है तो यह भी स्पष्ट हो गया कि बिहार में 1980 से लेकर आज तक शिक्षण का माहौल नहीं है। कदाचार के सहारे सर्टिफिकेट प्रदान किया जा रहा है। इससे गुरु की महिमा पर भी धब्बा लगा है।

शिक्षक दिवस के मौके पर यह चिंतन का विषय है। विषय है आखिर कैसी शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो। एक आग्रह है कि शिक्षक खुद पढ़ें और छात्र छात्राओं को शिक्षा दें। कारण पिछले 40 सालों में शब्द बदले हैं। संस्कार बदले हैं और ज्ञान की खोज के रास्ते बदले हैं। जिस कारण बहुत पहले पढ़े गए विषय को उसी रूप में मानना उचित नहीं है। पत्र पत्रिका और अखबार से नई जानकारी मिलती है। इस कारण दृष्टि और दृष्टिकोण में नीर क्षीर विवेक की आवश्यकता है।



आलेख_

रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर





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