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Nawada News : बापू चाहते थे दैहिक, दैविक भौतिक ताप से मुक्त समाज, गांधी जयंती पर विशेष...

  


बापू चाहते थे दैहिक, दैविक भौतिक ताप से मुक्त समाज, कर्म और वचन में एकरूपता के लिए महात्मा गांधी सदा आदर्श हैं : रत्नाकर

नवादा लाइव नेटवर्क।

गांधी 20वीं शताब्दी के लोकप्रिय नायक थे। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने मानव काया में मानवेतर मसीहा रविंद्र नाथ टैगोर ने महात्मा तथा राष्ट्र ने बापू या फिर राष्ट्रपिता माना। गांधी जी ने अपने शब्दों मे अहिंसा को एक व्रत माना। गांधी जी आज भी ग्रामीण भारत में गांधी बाबा (मगध के इलाके में गा बाबा) के रूप में विद्यमान है। ऐसा लगता है स्वराज और रामराज समानाथर्क पर्यायवाची शब्द है। गांधी की नजर में समाज के दो मुख्य कष्ट विषमताएं का भेदभाव है, वे रामराज में लुप्त हो जाएगी। अब रामराज्य उन शब्दों में से एक है जिन्हें गांधीजी ने समाज में उठाया और उसमें नए अनोखे अर्थ भरे। मूल शास्त्रीय संदर्भ रामचरितमानस का है तुलसीदास ने लिखा।

दैहिक दैविक भौतिक तापा ,

रामराज्य कबहूं नहीं व्यापा।

राष्ट्रपिता इसी भाव की व्यवस्था के पोषक थे। विदेशी शासन व्यवस्था ने भारतीय गृह उद्योग धंधे का नाश, पंचायती व्यवस्था की समाप्ति एवं आर्थिक स्थिति में अवनति भारतीय शिक्षण प्रणाली के निर्मूलन की भूमिका रच दी। आजादी के संघर्ष और आजादी के बाद भी कई राष्ट्रों ने सावधान किया और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने खुद चरखा चलाकर वस्त्र बनाने का उदाहरण सामने रखा। गांधीजी ने असीमित ज्ञान और अपूर्व पंडितय के साथ आदितीय परख करने की क्षमता के कारण प्रथम किसान मजदूर और गांव के शिल्पकार को अपनाया।

अन्नदाता के प्रति उनके समर्पण के भाव का दूसरा उदाहरण नहीं है। शिक्षा एवं सामुदायिकता के विकास के लिए दर्जनों आश्रम और विद्या पीठ स्थापित किया गया। पटना में मौलाना मजहरूल हक ने जमीन प्रदान की, बिहार विद्यापीठ की स्थापना की गई और गांधीजी के प्रखर भक्त देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद वीसी नियुक्त हुए। कर्म और वचन में एकरूपता के लिए महात्मा गांधी सदा आदर्श हैं।

यह भी स्पष्ट है कि गांधीजी के लिए सदा अस्पृश्यता प्रश्न अविभाज्य रूप से स्वराज से जुड़ा है और यहां  समझौता करने को तैयार नहीं है। हम अछूतों को छोड़कर स्वराज रुपी स्वर्ग में नहीं जा सकते। बात चाहे राजनीतिक समुदाय रचने की हो या अछूतों दार की या फिर महिला मुक्ति की कही से शुरू हो उसे नैतिकता या धर्म पर खत्म होना है। राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं के प्रवेश में गांधीजी के प्रोत्साहन और उसकी सफलता सर्वविदित है। महिलाओं को इस शांतिपूर्ण संघर्ष में पुरुषों से बेहतर शांति सैनिक मानते हैं। उनकी अपनी धार्मिक निष्ठा पुरुषों से भी बढ़कर है। नारी जाति मूक तथा गंभीर सहिष्णुता की प्रतीक है। गांधीजी हर ढंग के नशा के विरोधी थे और अपने भाषण लेख स्पष्ट करते थे। नशा आदमी के नाश का कारण है इस कारण नशा खोर से देश की आत्मा भी भयभीत है।

राष्ट्रपिता का यह कथन हम एक जंतर देते हैं। जब अहम या अहंकार आपके सामने हो तो उसे दूर करने का तरीका यह है कि जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी को देखें एवं अपने दिल से पूछे कि जो कदम उठाने जा रहे हैं। उससे उस आदमी को कितना लाभ हो सकेगा और उसके जीवन एम भाग्य में कितना परिवर्तन संभव है। गरीब और दरिद्र नारायण जिनकी संख्या करोड़ों में है को स्वराज मिल सकेगा। जिनका पेट खाली है और आत्मा अतृप्त है। उन्हें देख लेने के बाद संदेश मिट जाएगा और अहम समाप्त हो जाएगा। राष्ट्रपिता के संदेश से यह स्पष्ट है कि जब तक दरिद्र नारायण का भाग्य बदल ना जाए तब तक यह माना जाएगा कि अभी और करने की जरूरत है।

1917 में गांधीजी किसान राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर चंपारण पधारे और नील पैदा करने वाले किसानों का दर्द पास रहकर देखा। उस कालखंड में चंपारण के किसान भयभीत रहा करते थे और सहयोग और सत्याग्रह आंदोलन के क्रम में गांधी जी को मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया। मजिस्ट्रेट के पूछने पर गांधी जी ने कहा हमने तुम्हारा कानून तोड़ा है चाहे तो मुझे गिरफ्तार करें। यह सुनकर मजिस्ट्रेट चुप हो गया और पास उपस्थित समूह ने गांधी जी का जयकारा लगाया।

लोगों के भैरव की मन का भूत भागने लगा और चंपारण के लोगों ने माना कि वह तो महात्मा हैं गांधी जी के महान व्यक्तित्व के कारण किसानों ने गांधीजी को नायक माना। लोग की भय रूपी मन का भूत भागने लगा और चंपारण के लोगों ने माना कि वह तो महात्मा है। गांधीजी के महान व्यक्तित्व के कारण किसानों ने गांधीजी को नायक माना। इस बीच राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा कि इसमें किंचित भी अतिश्योक्ति नहीं है अपितु अक्षरश सत्य है कि किसान के प्रथम दर्शन में मुझे भगवान अहिंसा एवं सत्य का साक्षात्कार हुआ। बीसवीं शताब्दी के महान नायक महात्मा गांधी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के मान्य नेता एवं मार्गदर्शक थे। स्वाधीनता आंदोलन के क्रम में औसत 18 किलोमीटर रोज औसत 79 किलोमीटर पूरे जीवन में यात्रा की। औसतन प्रतिदिन 700 शब्द और पूरे जीवन में एक करोड़ शब्द लिखें। सात पुस्तकें लिखी जिनमे भागवत गीता का गुजराती में अनुवाद भी शामिल है। गांधीजी लिखते थे और खूब लिखते थे। जिसका प्रमाण उनके शताधिक संकलनो स्थूलता है। इन संकलनो में गांधी जी के द्वारा यंग इंडिया, नवजीवन, हरिजन जैसी पत्रिकाओं में लिखे लेखों के अलावा पत्राचार भाषण कांग्रेस कमेटी के प्रस्ताव पत्र तार संदेश आदि संकलित है। 

1920 के पूर्व तक सबसे सक्रिय पार्टी कांग्रेस के सामने हिंदुस्तान के भविष्य को लेकर कोई स्पष्ट योजना का अभाव था। कांग्रेस पार्टी का प्रभाव उच्च वर्ग के लोगों तक सीमित था। देश के मान्य बुद्धिजीवी खासकर वकील, बैरिस्टर और लेखक थे। इस वर्ग के लोगों ने सरकार के सामने रियायत और सहूलियत की मांग करते थे। कांग्रेस व्यापकता की सीमा से दूर थी।

 चंपारण सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी की सक्रियता खासकर किसान मजदूर और शिल्प कारों के साथ सीधा संवाद और अफ्रीका यात्रा के दौरान अनुभव के कारण असली भारत की पहचान जो संख्या के आधार पर सात लाख गांव में बसा है को राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की मुख्य धारा के साथ जोड़ा। भारत की आत्मा गांवों में बसती है का संदेश व्यापकता की सीमा तक प्रभावी हो गया।

बापू, आपने व्यक्ति को, समाज को, राष्ट्र को और विश्व को बहुत कुछ प्रदान किया। लेकिन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की दो पंक्तियां आंखों में आंसू भर कर निवेदित करते हैं।

लौटो,छूने दो एक बार फिर अपना चरण अभय कारी रोने दो पकड़ वही छाती जिसमें हमने गोली मारी 

आलेख_


राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर

मोबाइल नंबर +919939704935

ग्राम पोस्ट मकनपुर, वारिसलीगंज नवादा

 





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