Teachers day : भारतीय संस्कृति में सबसे महानतम परंपराओं में सर्वश्रेष्ठ है 'गुरु-शिष्य परंपरा', शिक्षकों को उपहार नहीं आजीवन सम्मान दें छात्र
डॉ अनुज कुमार, निदेशक, मॉडर्न शैक्षणिक समूह |
भारतीय संस्कृति में सबसे महानतम परंपराओं में सर्वश्रेष्ठ है 'गुरु-शिष्य परंपरा', शिक्षकों को उपहार नहीं आजीवन सम्मान दें छात्र
शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में अभिभावकगण एवं विद्यार्थियों के नाम संदेश
नवादा लाइव नेटवर्क।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दिए भी गुरु मिलें, तो भी सस्ता जान।।
कबीरदास की उपर्युक्त पंक्तियां हमारे जीवन में शिक्षक के महत्व एवं महानता को प्रतिपादित करने हेतु पर्याप्त है। सचमुच, किसी भी प्रतिदान से शिक्षक के उपकारों का मूल्य चुकाना असंभव है। भारतीय संस्कृति में सबसे महानतम परंपराओं में से सर्वश्रेष्ठ है 'गुरु-शिष्य परंपरा'।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में यही परंपरा शिक्षक-विद्यार्थी परंपरा में परिवर्तित हुई है। इसी परंपरा को अक्षुण्ण रखने के लिए हम प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को देश के एक महान शिक्षक, प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक-दिवस के रूप में मनाते हैं।
शिक्षक वह व्यक्ति होते हैं, जिनके सद्प्रयासों से विद्यार्थियों के चरित्र एवं ज्ञान का तो परिमार्जन होता ही है, राष्ट्र के भविष्य-निर्माण की भूमिका भी शिक्षक ही रचते हैं। सही मायनों में कहा जाए तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी, समाज एवं देश की आधारशिला है।
वस्तुतः शिक्षक के उपकारों का मूल्य चुकाना असम्भव है। आज के व्यवसायीकरण और बाजारीकरण के दौर में हमारे सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का पतन होते जा रहा है। हम प्रत्येक वस्तु का महत्व उसके मूल्य से निर्धारित करने लगे हैं। यह संकीर्ण दृष्टिकोण हमारी शिक्षा पद्धति एवं गुरु-शिष्य संबंधों को भी प्रभावित कर रहा है। इससे प्रभावित होकर विद्यार्थी शिक्षक के द्वारा दिए गए ज्ञान, संस्कार एवं मार्गदर्शन का मूल्य कुछ रुपयों एवं कुछ उपहारों के द्वारा चुकाने का प्रयास करते हैं। वे शिक्षक दिवस पर उपहार में सस्ती-महंगी वस्तुओं को देकर अपने शिक्षक के कृपा का मूल्य चुकाना चाहते हैं, उन्हें प्रभावित करना चाहते हैं। यह शिक्षकों एवं उनके द्वारा दिए गए ज्ञान का अपमान है।
हालांकि व्यावसायिकता से प्रभावित कुछ शिक्षक भी इस कृत्य को प्रोत्साहित करते पाए जाते हैं। शिक्षकों को सबसे अधिक प्रसन्नता अपने विद्यार्थी की सफलता पर प्राप्त होती है। यदि उपहार देना चाहते हैं तो आप जीवन में सफल होकर अपने शिक्षकों को अपनी सफलता का श्रेय दें, उन्हें आजीवन आदर एवं सम्मान दें। शिक्षक भी मानव ही हैं, उनसे भी त्रुटियां हो सकती हैं। उनके त्रुटियों का अन्वेषण ना करके उनके लिए अपार कृतज्ञता एवं श्रद्धा का भाव रखें, यही शिक्षक के लिए सच्चा उपहार होगा।
अतः आदरणीय अभिभावकगण एवं प्यारे विद्यार्थियों से हमारी अपील है कि शिक्षक दिवस पर उपहार देने और लेने की प्रथा का बहिष्कार करें एवं शिक्षकों को आजीवन आदर और सम्मान का उपहार देकर उन्हें गौरवान्वित करें।
आलेख
डॉ. अनुज कुमार
निदेशक
मॉडर्न शैक्षणिक समूह, नवादा।
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