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बिहार दिवस@22 मार्च : आत्ममंथन का समय...

  


बिहार दिवस@22 मार्च : आत्ममंथन का समय...

नवादा लाइव नेटवर्क।

बिहार भारत के सांस्कृतिक इतिहास की लीला भूमि रही है। ग्रामीण संरचना और ग्रामीण संस्कारों पर वैदिक साहित्य का प्रभाव आज भी कायम है। बिहार के गाँव में कुल देवता और ग्राम देवता की अवधारणा आज भी है। मान्यता है कि सुखाड़ पड़ने पर मिथिला के राजा जनक ने हल जोता था। ढाई वार हल जोतने पर सीता निकली थीं। किसान ढाई रेखा खेत जोतकर सीता प्राप्त करने की भावना रखते हैं। यह लांगल पद्धति है। बिहार के किसान पुरुषार्थी माने जाते हैं, लेकिन बिहार प्रदेश के गठन के 112 वर्षों के बाद खेत और खलिहान के सामने संकट है।

 हार गये हथुआ महाराज

बिहार कल भी और आज भी कृषि के सहारे ही आगे बढ़ सकता है। जब 1912 में बंगाल से बिहार अलग हुआ था, उन दिनों जोतों के मालिक जमींदार और सामंत थे और किसान, जो अन्न, फल और दूध पैदा करते थे, वे जमींदारों के अत्याचार के कारण भूखे रहने को अभिशप्त थे। किसानों की करुण कहानी जानकर महात्मा गाँधी ने नील पैदा करने वाले किसानों के पक्ष में आंदोलन किया। चंपारण के किसानों ने अंगड़ाई ली। इसके बाद 1920 में महात्मा गाँधी पटना पधारे। उसी समय स्वामी सहजानन्द सरस्वती की भेंट महात्मा गांधी से हुई। स्वामी जी ने निश्चय किया कि वे देश की सेवा करेंगे। उसी समय कांग्रेस ने कौंसिलों के बायकाट का निश्चय किया। हथुआ महाराज (जो स्वयं भूमिहार ब्राह्मण थे), कौंसिल के लिए खड़े हुए। कांग्रेस ने एक अनपढ़ धोबी को उनके खिलाफ खड़ा किया। स्वामी सहजानन्द ने कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में सभा में कहा था कि राजा-महाराजा से यह उम्मीदवार कहीं अच्छा है। उस उम्मीदवार की जीत हुई। 

 .....और बिहार जागने लगा

1921 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस, जिन्होंने एक साल पूर्व आई सी एस परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया था सबसे आरामदायक नौकरी को गलामी का प्रतीक मानकर छोड़ दिया। त्याग की इस घटना ने बिहार के बुद्धिजीवियों को झकझोर दिया और मौलाना मजहरुल हक ने सदाकत आश्रम की स्थापना की। बिहार जागने लगा। 1927 में पटना जिले की किसान सभा के गठन में नया संदेश दिया। 1929 में स्वामी सहजानन्द सरस्वती की अध्यक्षता में बिहार प्रदेश किसान सभा का गठन सोनपुर में हुआ। इसके प्रदेश सचिव डॉ. श्रीकृष्ण सिंह और सदस्य जाने-माने कांग्रेसी नेता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह और राम दयालु सिंह निर्वाचित हुए। बिहार किसान सभा के प्रभाव के कारण ही कास्तकारी बिल वापस लेना पड़ा। 1931 से लेकर 1939 के बीच महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन, सुभाष चन्द्र बोस का बिहार भ्रमण एवं सोशलिस्ट पार्टी के व विहार प्रदेश किसान सभा के द्वारा जमींदारी प्रथा के नाश होने के अमान एवं किसान सत्याग्रह ने पूरे समाज को झकझोर दिया। पूरे बिहार में जनांदोलन की पृष्ठभूमि तैयार हो गयी। इस बीच रेबरा किसान सत्याग्रह, बड़हिया किसान सत्याग्रह में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव, साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी व राहुल सांकृत्यायन ने हल जोता था। जन-गायकों और पगडंडी के कार्यकर्ताओं ने नये वातावरण का निर्माण किया। इस बीच करो या मरो का नारा और तुम अपना खून दो, हम आजादी देंगे के भाव ने समाज के सभी वर्गों में नयी चेतना पैदा की।

मंजिल अभी दूर

इसी बीच 11 अगस्त, 1942 को बिहार के सात सपूत गोलीकांड में पटना सचिवालय के सामने शहीद हो गये और 23 हजार स्वतन्त्रता सेनानी जेलों में बंद हो गये। आजादी के संघर्ष के समय जहाँ कांग्रेसी मात्र स्वतंत्रता चाहते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस, स्वामी सहजानंद सरस्वती किसान-मजदूरों को वाजिब हक दिलाना चाहते थे। 1947 में भारत आजाद हो गया, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी गाँव उदास है, किसान पुत्र पलायन कर रहे हैं और मजदूरों का घर उदास है। धरती का सौंदर्य, बाढ़ और सुखाड़ विलुप्त कर रहा है। बिहार प्रदेश के गठन के बाद 47 साल संघर्ष में गुजरा। 63 साल नव-निर्माण का काल रहा, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था पर धन-बल के बढ़ते प्रभाव के कारण जिस मंजिल तक जाना था, वह आज भी दूर है। 

बिहार ने किया देश का नेतृत्व

बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति-आन्दोलन ने पूरे देश को प्रभावित किया और कांग्रेस सरकार का सिंहासन डोल गया। 26 जून, 1975 को इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा की। बड़ी संख्या में लोग जेलों में बंद किये गये। बिहार ने देश को नेतृत्व प्रदान किया। 1977 में भारत के प्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन जनता पार्टी के द्वारा किया गया। जनता पार्टी टूटती जुटती रही। 1990 में लालू प्रसाद फिर उनकी पत्नी राबड़ी देवी 15 सालों तक बिहार के नायक अर्थात् मुख्यमंत्री बने रहे। अपहरण, नरसंहार मुख्य धंधा रहा। चौक-चौराहों से पगडंडी तक अपराधियों का राज कायम हो गया। विकास के रास्ते बंद हो गये। चारा- घोटाला, अलकतरा घोटाला सुर्खियों का विषय बना। बिहार उपहास का प्रदेश बन कर रह गया।

सपने देखते हैं

 सपने बहुत कम साकार होते हैं, लेकिन एक सामान्य व्यक्ति और विशिष्ट व्यक्ति भी सपने देखते हैं। साहित्यकार प्रायः सपने के सच का पड़ताल करते हैं। इसी पड़ताल के क्रम में 24 मार्च 2011 को "सौ साल का बिहार" लेख दैनिक आज में प्रकाशित हुआ इसी कड़ी में "एक अकेला थक जाएगा" लेख दैनिक हिंदुस्तान में 17 मार्च 2017 को प्रकाशित हुआ और फिर दैनिक प्रभात में "और पहली बार टूटी जड़ता" शीर्षक से लेख प्रकाशित हुआ है। 

इन लेखों में हमने लिखा उसका सार संक्षेप है — “ बिहार का जनमानस हताश और निराश हो गया इसी बीच 2005 में विधानसभा चुनाव में न्याय और विकास के साथ नीतीश कुमार ने राजग गठबंधन के साथ सत्ता संभाली। उनके नेतृत्व में बिहार में आशा और विश्वास के वातावरण का निर्माण हुआ। जंगल राज के समाप्ति के लिए वातावरण का निर्माण बड़ी सफलता मानी गई। अब बिहार में जो सरकार चल रही है इस सरकार के लिए आत्ममंथन का समय है।

बिहार में 32 साल से डॉ राम मनोहर लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जीवन-सत्य अर्थात कार्यकर्ता प्रधान राजनीति की विदाई लगभग तय हो गई है। अब जाति विशेष के लोग खास पार्टी के झंडेदार हैं। इसमें बड़ी संख्या में सरकारी संस्थानों खासकर बालू, पत्थर और वन पदार्थों के अवैध कारोबारी भी हैं शराब माफिया, बालू माफिया और साइबर अपराधियों के कारण बिहार लगातार बदनाम हो रही है। 1974 से कई गुना अब अधिक भ्रष्टाचार बढ़ा है। शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है।

नीति, नैतिक राजनीति के दिन अब लद चुके हैं। राजनीतिक कम छल-प्रपंच अधिक होने के कारण नेता व्यक्तिवादी-परिवारवादी हो गए हैं, धनबल एवं बाहुबल प्रभावकारी हो गया है। अब कोई साधारण कार्यकर्ता नीति और नैतिकता पर चलने वाला चुनाव जीत भी सकता है यह प्रश्न 'यक्ष प्रश्न' के रूप में सामने खड़ा है। साहित्य-कला परख करने वाली व्यवस्था का घोर अभाव है। प्रबुद्ध जनों के लिए सोचने का वक्त है कि आखिर हम किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। 

 


आलेख

रामरतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर'

मोबाईल - 8544027230








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