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भारत और चीन ने नहीं किया रूस के खिलाफ वोट



विंटर ओलिंपिक्स के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ने जब 'नो लिमिट' यानी असीमित सहयोग वाले समझौते पर दस्तखत किए तब ये कहां पता था कि कुछ दिनों बाद ही एशिया और यूरोप के सामरिक समीकरण बदलने वाले हैं। दोनों देशों ने अमेरिका के खिलाफ जुगलबंदी का नया अध्याय लिखा था। इसलिए जब पुतिन ने डोन्टेस्क और लुहांस्क को रूसी हिस्सा घोषित कर यूक्रेन पर हमला कर दिया तो कुछ घंटों के भीतर ही इसका लिटमस टेस्ट भी होना तय हो गया। 4 फरवरी के समझौते की परीक्षा 24 फरवरी को होनी थी। न ही भारत ने और न ही चीन ने सोचा था कि पुतिन अटैक करेंगे। अब जब रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव में घुस चुकी है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में निंदा प्रस्ताव आ गया तो फैसले की घड़ी भी आ गई। इससे पहले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पुतिन के विरोध के बावजूद नाटो के विस्तार पर चिंता जता चुके थे। रूस पर अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों का असर भारत पर पड़ने की बात भी विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला सार्वजनिक कर चुके थे। साथ ही रूस के साथ दशकों के पुराने संबंधों को भी ध्यान रखना था। इसलिए जब वोटिंग हुई तो भारत ने इसमें हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया। उधर रूस के बेहद करीब आ चुके चीन ने भी भारत की तरह वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति से भारत के बेहद करीब आ चुके सऊदी अरब ने भी यही फैसला लिया। रूस ने वीटो का इस्तेमाल किया। निंदा प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।


इसके बाद यूएन महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने बेबसी वाला ट्वीट किया - यूएन का गठन युद्ध के बाद युद्ध समाप्त करने के लिए हुआ था। आज वो उद्देश्य हासिल नहीं हो सका, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए, हमें शांति को एक और मौका देना चाहिए। वैसे भारत और चीन वोट करते भी तो फर्क नहीं पड़ता क्योंकि रूस के पास खुद ही वीटो पावर है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण है अमेरिका और नाटो देशों के दबाव में न आना। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत पश्चिमी नेता पीएम मोदी से तटस्थता छोड़कर पुतिन की आलोचना करने का दबाव बना रहे थे। भारत के लिए कूटनीतिक परीक्षा की घड़ी थी क्योंकि यूक्रेन पर हमले से यूएन चार्टर का उल्लंघन हुआ है। इसलिए भारत ने वोट न करने को जो कारण बताए उसके साथ-साथ ये भी कहा कि युद्ध से किसी मसले का हल नहीं निकल सकता। 

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