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Special Report : आधुनिक बिहार के निर्माता थे बिहार केसरी डॉ. श्री कृष्ण सिंह...



आधुनिक बिहार के निर्माता थे बिहार केसरी डॉ. श्री कृष्ण सिंह, जयंती पर विशेष...

नवादा लाइव नेटवर्क।

बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह और दण्डी संन्यासी स्वामी सहजानंद सरस्वती ने 1920 में पटना में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का दर्शन किया। दर्शन जानना और दर्शन देने वाले का साक्षात दर्शन करना एक संयोग था,जिसके सामने भारत की आजादी और मानवतावादी समाज की संरचना उद्देश्य बन गई। इस संदर्भ में बिहार विभूति स्वर्गीय अनुग्रह नारायण सिंह ने एक जगह लिखा था 1920 के बाद बिहार का इतिहास श्री बाबू के जीवन का इतिहास है।

 महात्मा गांधी द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन को उन्होंने बिहार में गति प्रदान की और 1922 में शाह मोहम्मद जुबैर के निवास स्थल पर गिरफ्तार कर लिए गए और वह पहली बार जेल गए। उसी समय बिहारी नेताओं ने उन्हें बिहार केसरी की उपाधि से विभूषित किया। 

1923 में जेल से मुक्त होने के बाद उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया। 1924 में वे मुंगेर जिला परिषद के उपाध्यक्ष पद पर आसीन हुए। शाह मोहम्मद जुबैर के पक्ष में अध्यक्ष बनने से इंकार कर दिया। श्री बाबू के राजनीतिक जीवन में इस घटना का महत्व है कि वह सबों को लेकर चलने के पक्षपाती थे। 

 1929 में सोनपुर के हरिहर क्षेत्र मेला के समय बिहार के किसानों के दुर्दशा पर चिंतित नेताओं का जमावड़ा लगा। स्वामी सहजानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में पटना जिला में किसान सभा संचालित था। बिहार प्रदेश किसान सभा का गठन स्वामी सहजानंद सरस्वती की अध्यक्षता में हुआ और श्री बाबू को सचिव चुना गया। इसी वर्ष श्री बाबू बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव चुने गए।

 स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने में बिहार के नेताओं में श्री बाबू अगुआ थे। 1930 में बेगूसराय गढपुरा में नमक बनाते समय खोलते हुए कड़ाह को अपने दोनों हाथ से पकड़ कर उस पर सो जाने से वह बुरी तरह जख्मी हो गए थे। जख्मी हालत में अंग्रेज सैनिकों ने जिस क्रूरता से उन्हें घसीट कर बंदी बनाया उसे देख बर्बरता भी लज्जित हो गई थी। 

 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के कारण श्री बाबू को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में भेजा गया। इस बीच धर्मपत्नी राम रुचि देवी प्रायः बीमार रहने लगी और 31 जनवरी 1944 को वह स्वर्गवास कर गई। भारत की आजादी को उन्होंने अपना लक्ष्य माना था। उसके प्रति अडिग रहे। अंग्रेज सरकार ने शर्त लगाया था कि अगर वह आजादी के लगाए संघर्ष से हट जाए तो गिरफ्तार नहीं किया जाएगा लेकिन श्री बाबू ने यह स्वीकार नहीं किया था।

स्वतंत्रता सेनानी के रूप में श्री बाबू ने 7 वर्ष 10 दिन तक जेल यातना सही और कई ढंग से प्रताड़ित होते रहे लेकिन संकल्प के प्रति निष्ठा कभी कमजोर नहीं हुई। 

बढ़ते जनाक्रोश को देखकर अंग्रेजों की सरकार ने जनप्रतिनिधियों की सरकार का गठन किया। इस ढंग की सरकार में राज्यपाल के पास शक्ति होती थी और जनप्रतिनिधियों का काम सरकार को सलाह देना होता था।माना जाता था कि या अंतरिम सरकार थी। 1939 में गठित सरकार के श्री बाबू प्रधानमंत्री चुने गए। फिर आजादी के बाद गठित बिहार सरकार के मुख्यमंत्री चुने गए। दोनों कार्यकाल मिलाकर 16 वर्ष 10 माह कार्यरत रहे। 

श्री बाबू के जीवन का अंतिम चुनाव वर्ष 1957 में संपन्न हुआ। इस चुनाव में भी उनके कुशल नेतृत्व में कांग्रेस को विजय मिली। इस बार बिहार विधानसभा के नेतृत्व के लिए कांग्रेस दल में संघर्ष हुआ और मतपत्रों की गिनती दिल्ली में हुई। श्री बाबू विजयी हुए और पुनः मुख्यमंत्री बने पर इस संघर्ष से श्री अनुग्रह नारायण सिंह के प्रति उनकी सद्भावना में कोई कमी नहीं आई। नेतृत्व संघर्ष के बाद जब दोनों मिले तो राम भरत मिलाप का दृश्य उपस्थित हुआ और श्री बाबू और अनुग्रह बाबू की जोड़ी लगातार बिहार के विकास के लिए तत्पर रही। 

श्री बाबू के मन में बिहार के विकास की जो योजना थी, उनके अनुसार उन्होंने बिहार में जापानी खेती का प्रचलन बढ़ाया और हरित क्रांति लाने के लिए कृषकों को काफी उत्साहित किया। उनके कार्यकाल में प्रखंडों का गठन हुआ और सभी प्रखंडों में कृषि उत्पाद के सामानों की प्रदर्शनी लगती थी और उन्नत प्रभेद के अन्न, फल-फूल,गन्ना एवं सब्जी उत्पादक कृषकों को उपहार प्रदान किया जाता था। इस ढंग के आयोजनों में जनप्रतिनिधि क्षेत्र के बुद्धिजीवियों को आमंत्रित किया गया था। 

वैज्ञानिक ढंग से खेती करने के लिए प्रशिक्षित कृषि वैज्ञानिकों का दल सक्रिय ढंग से काम करता था। उन्होंने सबौर में कृषि कॉलेज, रांची में कृषि एवं पशुपालन महाविद्यालय, ढोली में कृषि महाविद्यालय, पूसा में ईख अनुसंधान संस्थान तथा सिंदरी में भारत का प्रथम खाद कारखाना स्थापित करवाये।

 विद्युत की आपूर्ति हेतु दामोदर घाटी तथा पतरातू विद्युत केंद्र की स्थापना दक्षिण बिहार और उत्तर बिहार को जोड़ने के लिए हाथीदह में गंगा नदी में पुल एवं बरौनी और डालमिया उद्योग समूह की स्थापना जैसे बुनियादी काम श्री बाबू के शासनकाल में हुए थे।

 श्रीबाबू की सरकार ने बिहार के आर्थिक विकास और औद्योगिक क्रांति लाने में सक्रिय भूमिका निभाई। बरौनी तेल शोधक कारखाना, रांची में हिंदुस्तान लिमिटेड का कार्यालय दिल्ली से स्थानांतरित कर लाया गया तथा बोकारो में बड़ा लौह कारखाना बनकर तैयार हो गया था। बिहार में 29 चीनी मिलें सफलता के साथ चल रही थी और बिहार देश का दूसरा चीनी उत्पादक प्रदेश था। 

उनके शासन काल में शिक्षा, सामुदायिक विकास, कृषि, पशुपालन सहयोग संस्थाएं, उद्योग, तकनीकी शिक्षा, सिंचाई, बिजली, परिवहन स्थानीय स्वशासन, कारा, भूमि सुधार, स्वास्थ्य, जलापूर्ति तथा परिवहन और संचार के कार्यक्रम को प्रारंभ किया गया और उनके शासनकाल में काफी प्रगति हुई। बिहार के शोक के रूप में जानी जा रही कोसी नदी की बाढ़ से बचाव के लिए जनसहयोग या श्रमदान से 152 मील लंबा बांध करीब-करीब पूरा हो चुका था।

 श्री बाबू ने सामाजिक विषमता दूर करने का जोरदार प्रयास किया। भाषणों में स्पष्ट रूप से बोलते थे अगर हिंदुस्तान को आगे बढ़ाना है तो हरिजनों को ऊपर उठाना होगा। हरिजनों की दीन-हीन स्थिति है। सिद्धांत बड़ा बड़ा बघारा करो, मगर व्यवहार में यदि हरिजन ब्राह्मण में भेद करोगे तो सब व्यर्थ है। 

श्री बाबू ने दलितों के मन की मजबूती के लिए 27 सितंबर 1953 को अपने नेतृत्व में बैधनाथ मंदिर देवघर का मुख्य प्रवेश द्वार से 800 हरिजनों के साथ प्रवेश किया। हरिजनों ने शिव की पूजा की। यह दलितों के मन की मजबूती के लिए श्री बाबू के द्वारा उठाए गए क्रांतिकारी कदम है। इसके साथ हरिजन कल्याण के कई महत्वाकांक्षी योजना को भी धरती पर श्री बाबू के नेतृत्व की सरकार ने साकार किया।

जमींदारी प्रथा शोषण पर आधारित व्यवस्था की जातिगत दुर्भावना सामाजिक विकास में बाधक है। छुआछूत की भावना मानव जाति के लिए दुखद अध्याय है। इस अध्याय को समाप्त करने के लिए श्री बाबू ने जो प्रयास किए इससे यह मानना न्यायसंगत है कि श्री बाबू बिहार के लेलिन थे। लेलिन का सोवियत रूस तो बिखर गया लेकिन बिहार मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है।

आलेख_


रामरतन प्रसाद सिंह "रत्नाकर"







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