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Nawada News : राष्ट्र कवि रामधारी सिंह "दिनकर", जानिए इन्हें क्यों विश्व कवि कहते हैं साहित्यकार "रत्नाकर"

  

रामधारी सिंह "दिनकर"

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह "दिनकर", जानिए इन्हें क्यों विश्व कवि कहते हैं साहित्यकार "रत्नाकर"

नवादा लाइव नेटवर्क।

20वीं शताब्दी राजनीतिक साहित्यिक एवं सामाजिक परिवर्तन की शदाब्दी के रूप में यादगार है। इस शताब्दी में राष्ट्रीयता की भावना का संचार स्पष्ट दिखता है। साहित्य में भक्ति काल था। हिंदी साहित्य में भक्त कवियों का महत्व था। वे साहित्य के सहारे कई ढंग के परंपरागत भावो में बदलाव के लिए साहित्य सृजन करते रहे हैं । 


देश गुलामी के अंधकार के कारण अपने आप को भूलता जा रहा था। माना जाता है कि साहित्य में युग परिवर्तन की क्षमता होती है। आजादी के लिए संघर्ष काल से ही हिंदी साहित्य के साहित्यकारों के मन में राष्ट्रीयता के भाव के साथ आर्थिक समानता के भाव साहित्य का विषय हो गया।


राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना स्पष्ट रूप से दिखता है। क्योंकि अंग्रेजी शासन में जातिगत विद्वेष एवं घृणा के भाव उभर कर भेद नीति में शासन करने की प्रथा थी। भारतीय भाषाओं को गुलाम बनाकर अंग्रेजी भाषा राजपाट की भाषा बन गई थी। ऐसी परिस्थिति में अपनी संस्कृति भाषा इतिहास भूगोल की रक्षा के लिए राष्ट्रवाद का भाव साहित्यकारों के मन में उठना स्वभाविक है। 

देश आजाद हुआ लेकिन आर्थिक सामाजिक असमानता के भाव समाप्त नहीं हुआ है। दिनकर जी इसी मानसिकता के खिलाफ राष्ट्रीय विचारधारा के साथ प्रगतिशील धारा के संपोषक बने। प्रगति शीलता में शोषको के विरुद्ध घृणा शोषितो के प्रति करुणा दया का भाव साहित्य का मार्गदर्शक उद्देश्य बना। जो सही मायने में समाजवादी दर्शन का पक्षपाती है। क्रांति दर्शी होना शोषण के खिलाफ शंखनाद दिनकर जी का स्वाभाविक गुण है। इस गुण के कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का रामराज्य जिसमें संत तुलसीदास के भाव "दैहिक दैविक भौतिक तापा रामराज्य केहूं नहीं व्यापा" के समर्थक हैं। गांधी के साथ मार्क्स के दर्शन से प्रभावित थे।


जब राज धर्म का निर्वाह करने वाले लोग अपने राज्य धर्म का निर्वाह नहीं कर पाते तो जनता को अधिकार है कि वह वैसे शासकों को हटा दें। दिनकर जी लिखते हैं_

सदियों की ठंडी बुझी राख सुग बुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है, 

दो रात समय का घर-घर नाद,

सुनो सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

यह कविता दिनकर जी भारत के प्रथम गणतंत्र दिवस के अवसर पर लिखी थी। 1974 में जब जेपी नेतृत्व संपूर्ण क्रांति का आंदोलन चला इस कविता की पंक्ति सिंहासन खाली करो कि जनता आती है लोकप्रिय नारा बन गया था। राष्ट्रकवि दिनकर आर्थिक असमानता से मर्माहत हो जाते हैं। दुखी मानवता की रक्षा के लिए विद्रोह का बिगुल फूंकते हैं। दिन हीन मानवता से मर्माहत कवि पीड़ित मानवता का आमंत्रण करते हैं। चित्र गाथा में रौद्र आमंत्रण स्वीकार कर लिखते हैं_

श्वानों को मिलता दूध वस्त्र, 

भूखे बालक उकलाते हैं, 

मां की हड्डी से चिपक चिपक,

ठिठुर जाड़ों में रात बिताते हैं,

युवती की लज्जा वसन बेच जब व्याज चुकाने जाते हैं,

 मालिक जब तेल फुलेलो पर पानी सा द्रव्य बहाते हैं।

रामधारी सिंह दिनकर में सामाजिक एवं आर्थिक विषमता के प्रति प्रचंड विद्रोह है। शोषण से त्रस्त दुखियों की दुर्दशा पर रोष प्रकट करते हुए उन्होंने और उनके जागरण का प्रयत्न तथा नवीन व्यवस्था का आह्वान किया है। दिल्ली और मास्को कविता में रूसी क्रांति का गुणगान के पीछे उसी साम्यवादी व्यवस्था का समर्थन है। जहां पीछे छूटे लोगों को समुचित अधिकार मिल सके। कुरुक्षेत्र में दिनकर ने लिखा है_

जब तक मनुज मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,

 समित ना होगा कोलाहल संघर्ष नहीं कम होगा।

गुण और कर्मों के आधार की यह व्यवस्था आगे चलकर वंश कुल और जाति में धीरे-धीरे बदल गई। जिसे धीरे-धीरे सामाजिक समरसता छिन्न-भिन्न हो गई और समाज अनेक जातियों उप जातियों में विभाजित होकर रूडीबद्ध हो गया। तथा सामाजिक प्रगति और परिस्थितिक सद्भाव की व्यवस्था चौपट हो गई। रश्मिरथी में दिनकर समाज को उच्च नीच छोटे-बड़े में बांटने वाली जाति व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए कहते हैं_

ऊंच-नीच का भेद ना माने वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,

दया धर्म जिसमें हो सबसे वही पूज्य प्राणी है,

क्षत्रिय वहीं हो भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,

सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है हो जिसमें तप त्याग।

रामधारी सिंह दिनकर किसी भी प्रकार की ऐसी तटस्थता या पक्षपात की भावना या व्यवहार के विरोधी हैं। जो किसी वर्ग विशेष के साथ अन्याय करने के लिए हम को प्रेरित करें वे लिखते हैं_

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध,

 जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।

तटस्था हमसे पाप करवाती है और संसार को किसी ऐसी अनहोनी की ओर लेकर चलती है जो भारी विनाश का प्रतीक हो सकती है। इसलिए संपूर्ण वसुधा को किसी भी भावी संकट से बचाने के लिए वह देश, समाज एवं विश्व के जिम्मेदार लोगों को यह संदेश दे रहे हैं कि जो तटस्थ हैं समय उनका भी अपराध लिखेगा। यदि विश्व नेतृत्व आज भी न्याय संगत बोलना आरंभ कर दे तो इस महान कवि का विश्व शांति का सपना साकार हो सकता है।


 संसार के ख्याति प्राप्त साहित्यकारों गोरकी, इलियटशेक्सपियर, टॉलसराय जैसे साहित्यकारों के जैसा सरल भाषा और पात्रों के स्पष्ट चरित्र चित्रण के साथ सामान्य व्यक्ति में असमान गुणों को रेखांकित किया है। बहुत कुछ रामधारी सिंह दिनकर के काव्य एवं गध रचनाओं में देखा जा रहा है। यही कारण है दिनकर जी की रचनाएं आज चीन, रूस, नेपाल ,अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, पाकिस्तान के विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है।

आले_


राम रतन प्रसाद सिंह "रत्नाकर"

मो.+91 85440 27230


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