Special Report : विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस : भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में पत्रकारों का योगदान सदा स्मरणीय
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में पत्रकारों का योगदान सदा स्मरणीय
दो वक्त चाय की जुगाड़ भी नहीं कर पाते आंचलिक पत्रकार!
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर की विशेष रिपाेर्ट...
नवादा लाइव नेटवर्क।
तीन लोक, तीन देवता और त्रिवर्ण ये सनातन संस्कृति के हिस्से है तीन लोक में आकाश, पाताल और धरती तीन देवताओं में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीन वर्ण या जाति में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य यह विभाजन वैदिक काल का है। बाद में शूद्र भी एक जाति मानी गयी। उस काल खंड की संस्कृति के अनुसार नारद जी एकमात्र पत्रकार थे जो तीनों लोकों का हाल और तीनों देवताओं के साथ वार्तालाप करते थे। नारद जी त्रिवर्ण से जुड़े जीवन का हाल सुनाते थे। कैलाश पर्वत पर निवास करनेवाले शिव को, पाताल लोक के क्षीर सागर में विराजमान विष्णु जी को हाल या समाचार नारद जी देते थे तो त्रिवर्ण के लोगों का हाल भगवान ब्रह्मा को बताते थे। तीनों लोकों का भ्रमण और तीनों देवताओं की गतिविधियों की जानकारी नारद जी प्रदान करते थे। नारद जी का काम कठिन था। कारण समाचारों के आदान-प्रदान के क्रम में कई बार देवताओं के गुस्से का शिकार भी नारद जी को होना पड़ा होगा। नारद जी का अपना कोई ठिकाना नहीं, यही कारण था कि उनकी शादी नहीं हुई, फिर भी नारद जी अपने मिशन में लगे रहे। इस प्रकार से लगता है कि नारद जी सृष्टि के प्रथम पत्रकार थे।
द्वापर आने पर व्यक्ति के विचार-संस्कार बदलने लगे और स्वार्थ की भावना का प्रभाव बढ़ने लगा। भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने नारद जी का अपमान किया तो नारद जी ने श्राप दे दिया, इससे सुन्दर कायावाले अनिरुद्ध को कुष्ठ हो गया। द्वापर में लोभ और स्वार्थ के कारण महाभारत जैसा भयानक युद्ध हुआ। युद्ध का हाल संजय हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र को सुनाते हैं। युद्ध कुरुक्षेत्र में हो रहा था और संजय सब कुछ वैसा ही सुनाते हैं जैसे आज दूरदर्शन पर सुनाया जाता है। इस दृष्टि से नारद जी प्रथम पत्रकार हुए और संजय आकाशवाणी की तरह दूसरे पत्रकार हुए। यह है सांस्कृतिक इतिहास की एक संक्षिप्त झलक।
पत्रकारिता सदा से कठिन काम रहा है। भारत में सर्वप्रथम उस समय की भारत की राजधानी कलकत्ता से 1780 में जेम्स आंग्स्टन टिकी ने देश का पहला अंग्रेजी पत्र 'टिकी', 'बंगाल गजट' या 'कलकत्ता एडवरटाइजर' का प्रकाशन प्रारंभ किया। इसके ठीक 46 वर्षों के बाद देवनागिरी में हिन्दी का प्रथम पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। इसके सम्पादक पंडित युगल किशोर शुक्ल थे। यह तो कलकत्ता नगर का सौभाग्य है कि हिन्दी का प्रथम पत्र यहीं से प्रारंभ हुआ। बिहार का प्रथम हिन्दी पत्र 'बिहार बंधु' सन् 1873 में कलकत्ता से ही प्रकाशित हुआ। यह गर्व का विषय है कि मगध (वर्तमान बिहारशरीफ) निवासी पं. मदन मोहन भट्ट और पं. केशवराम भट्ट के प्रयास से प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसके प्रथम सम्पादक थे मुंशी हसन अली, जो भट्ट बंधुओं के मित्र थे तथा हिन्दी, उर्दू और फारसी के विद्वान के साथ राष्ट्रवादी विचार के थे।
बिहार का प्रथम अंग्रेजी पत्र बिहार हेराल्ड साप्ताहिक है जिसे गुरु प्रसाद सेन ने प्रकाशित किया। बिहार की पत्रकारिता का इतिहास एक सौ पैंतीस वर्षो का है, मगर यह उथल-पुथल के साथ कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है। बिहार में पत्रकारिता का अलख जगानेवालों में डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने 1894 में महेश नारायण के सहयोग से पटना से बिहार टाइम्स' का प्रकाशन प्रारंभ किया। बाद में उसका स्थान बिहार ने ले लिया और 1912 में इसका विलय 'दैनिक बिहारी में हो गया। डॉ. सिन्हा खुद इसके प्रकाशक थे। उसी वर्ष बंगाल से बिहार अलग हो गया। उस कालखंड में प्रायः सम्पादक ही प्रकाशक होते थे और कम पूंजी में ही अखबार प्रकाशित होता था।
15 अगस्त, 1918 को डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा ने पटना के अपने सहयोगी वकीलों की सहायता से अंग्रेजी दैनिक सर्चलाइट का प्रकाशन प्रारंभ किया। 'सर्चलाइट' ने महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन को गति देने में अहम् भूमिका निभायी।
1900 ई. के प्रारंभ से राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों में यह भाव आया कि जन-जागरण के लिए अखबार महत्वपूर्ण साधन है। यही कारण है कि 1921 तक आते-आते कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन एक मिशन के तहत होने लग गया था।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में पत्रकारों का योगदान सदा स्मरणीय है। यही कारण है कि हमारे राष्ट्रनेताओं ने राष्ट्रसेवा के लिए अखबारनवीसी का सहारा लिया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, सेठ गोविन्द दास, लाला जगतनारायण, डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, प्रो. जयराम दास, दौलत राम एवं श्री प्रकाश जी आदि सभी प्रमुख राष्ट्रनेता पहले सम्पादक ही थे।
बिहार में महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन के समय प्रकाशित होने वाले प्रमुख हिन्दी पत्रों में थे। राष्ट्रीय स्तर पर सम्पादक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, महावीर प्रसाद द्विवेदी, जगत नारायण लाल और राज्य स्तर पर सम्पादक डॉ. राजकिशोर वर्मा, गोलमाल के सम्पादक दीनानाथ सिगतिया, बिहारी के सम्पादक गोकुलानन्द प्रसाद वर्मा, हुंकार के यमुना कार्यों और 'योगी' के सम्पादक श्रीनारायण प्रसाद सिंह, तरुण भारत के सम्पादक सोना सिंह चौधरी, 'प्रजाबंधु के सम्पादक जीवानन्द शर्मा, पाटलीपुत्र के सम्पादक डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल और 'युवक' के सम्पादक रामवृक्ष बेनीपुरी।
बिहारी पत्रकारों और साहित्यकारों में आचार्य शिवपूजन सहाय का नाम आदर के साथ लिया जाता है। वह अभावों में रहे लेकिन पत्रकारिता और साहित्य के लिए सदा काम करते रहे। उन्होंने सुल्तानगंज से प्रकाशित 'गंगा लहेरिया सराय से प्रकाशित 'बालक' और पटना से प्रकाशित 'हिमालय' का सम्पादन किया। साहित्य और पत्रकारिता को साथ लेकर चलनेवाले रामवृक्ष बेनीपुरी ने पटना से प्रकाशित 'युवक' और 'जनता' का सम्पादन किया। 1957 में रामवृक्ष बेनीपुरी के विधानसभा सदस्य चुन लिये जाने के बाद 'जनता' के सम्पादक का काम पूर्ण रूप से कृष्णनन्दन शास्त्री देखने लगे। शास्त्री जी पहले साप्ताहिक 'जनता' के सम्पादक थे और दैनिक 'जनता' में सहायक सम्पादक के बतौर कार्यरत थे। रामवृक्ष बेनीपुरी के साथ दैनिक 'जनता' का न केवल सम्पादकीय पृष्ठ वह देखा करते थे बल्कि अखबार के लिए सम्पादकीय भी कृष्णनन्दन शास्त्री ही लिखा करते थे।
बिहारी पत्रकारों में ब्रजनन्दन आजाद 1940 से 1947 तक 'आर्यावर्त के सम्पादक रहे। इसके बाद इंडियन नेशन का सम्पादन 1968 से 1972 तक किया। ब्रजनन्दन आजाद बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अध्यक्ष रहे और पत्रकारों की समस्या उठाते रहे। देवव्रत शास्त्री कई पत्र-पत्रिकाओं में काम करने के बाद अपने बलबूते 26 जनवरी 1947 में दैनिक नवराष्ट्र का प्रकाशन कदमकुआं पटना से शुरू किया, लेकिन वाहन दुर्घटना में मृत्यु होने के कारण 'नवराष्ट्र' का प्रकाशन बंद हो गया।
आदर के साथ पं. श्रीकान्त ठाकुर विद्यालंकार का नाम भी लिया जाता है। उन्होंने 1926 में पत्रकारिता शुरू की और 1968 में दैनिक आर्यावर्त से अवकाश ग्रहण किया। वह बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अध्यक्ष रहे और कई वर्षों तक बुद्धिजीवी सदस्य के रूप में विधान परिषद के सदस्य रहे।
1980 के आसपास बिहार में अखबार के माने 'प्रदीप' और 'आर्यावर्त' था। दैनिक प्रदीप के प्रतिभा सम्पन्न सम्पादक हरिओम पांडेय सदा पत्रकारों के हित के लिए प्रबंधन से जूझते रहे। वह आंचलिक पत्रकारों के शुभचिंतक थे और उन्हें बेहद प्यार देते थे। पटना स्थित दैनिक 'प्रदीप' कार्यालय का दरवाजा आंचलिक पत्रकारों के लिए सदा खुला रहता था। वह प्रतिभा के धनी और राष्ट्रवादी विचार के सम्पादक थे। पटना सिटी से दैनिक आर्यावर्त के संवाददाता के रूप में पत्रकारिता में प्रवेश करनेवाले रामजी मिश्र मनोहर दैनिक आर्यावर्त के उपसम्पादक के साथ सम्पादकीय पृष्ठ का आलेख देखते थे। आंचलिक पत्रकार से उपसम्पादक तक आने के बाद भी सदा पत्रकारों के शुभचिंतक बने रहे।
आंचलिक पत्रकारिता- कठिन योग
पगडंडी का सफर सदा कठिन होता है। कहीं खंदक, तो कहीं कांटे, कहीं ऊंची और कहीं नीची पगडंडी पर चलना मुश्किल होता है। इस पगडंडी अर्थात् अंचल का संवाद संकलन करनेवालों को, जो जिला, अनुमंडल और अंचल तक का संवाद अखबारों के पास भेजते हैं, आंचलिक पत्रकार कहे जाते हैं। 21वीं शताब्दी के पूर्व तक इन आंचलिक पत्रकारों का संवाद पूरे प्रदेश में पढ़ा जाता था। नवादा के किसी प्रखंड का संवाद बेगूसराय, सहरसा में नौकरी करनेवाले भी पढ़ लेते थे और जान जाते थे। लेकिन 21वीं शताब्दी का दैनिक अखबार मात्र एक जिले तक सिमट गया है। अब गया का संवाद नवादा में नहीं और शेखपुरा का संवाद जमुई में नहीं होता है। अखबार रंगीन है लेकिन रूपवती भिखारिन के जैसा प्रभावहीन है। जिले का संवाद तो जिले के लोग मिलते-जुलते जान लेते हैं। आज अखबारों का यह स्वरूप आंचलिक पत्रकारों के लिए कष्टकारक है।
आंचलिक पत्रकार एक ऐसा सेवक है जिसे अखबार भीख मांग कर खाने को विवश करता है। वह जिसकी गलत हरकत पर संवाद लिखना चाहता है उसी के दरवाजे विज्ञापन के लिए जाना होता है। यह काम पत्रकारों के मान- सम्मान के खिलाफ है, लेकिन अखबार का प्रबन्धन कहता है कि अखबार के संवाददाता बन जाने से व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाता है। संभव है अखबार के संवाददाता को भूख की बीमारी से मुक्ति मिल जाती होगी? एक अखबार आंचलिक पत्रकारों को जो देता है उससे दो शाम चाय की व्यवस्था भी संभव नहीं है।
1947 में राष्ट्रवादी सोंच के देवव्रत शास्त्री ने कमजोर आर्थिक स्तिथि का सामना करते हुए दैनिक नवराष्ट्र का प्रकाशन पटना से हुआ था। बड़ी संख्या में लेखकों पत्रकारों को उन्होंने जोड़ा था। आज के कठिन दौर में जब मीडिया पर बड़े पूंजपतियों का कब्जा है और वे बिहार सरकार से करोड़ों का विज्ञापन पाते हैं लेकिन बिहार के लेखकों को स्थान नहीं देते है और नही तो बिहार के विभूतियों का जीवनवृत को स्थान देते है, इसे अंधेरे में कई सप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक पत्र बिहारी अस्मिता बचाने में लगे है। पटना से प्रकाशित दैनिक दस्तक प्रभात का प्रकाशन प्रभात वर्मा का हठ-योग का उदाहरण है। पत्रकारिता की मशाल जज्बा के साथ पकड़े हुए है और बिहार की समस्याओं, बिहारी साहित्य और बिहार की संस्कृति को स्थान देकर अंधेरे में प्रकाश अर्थात दस्तक प्रभात प्रकाशित कर रहे हैं।
वर्ष 1991 से लेकर 2013 तक का समय पूरी दुनिया और भारतीय समाज व जनमानस में भारी उलट-पुलट करने वाला रहा है। इस बीच न सिर्फ हमारा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ढाँचा बदला है बल्कि साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई है। निजीकरण और उदारीकरण की आंधी ने न सिर्फ जीवन का यथार्थ बदलकर रख दिया बल्कि उसे देखने का नजरिया भी बदल दिया है या फिर ये भी कहा जा सकता है कि वैश्विक बाजारवाद की आंधी ने पत्रकारों को भी अपने आगोश में ले लिया है उदारीकरण की नीतियाँ लागू की गयी. इससे स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है कि आज की व्यवस्था को विचारवान नागरिक नहीं बल्कि भारी जेब वाला उपभोक्ता चाहिए। पत्रकारिता भी इन उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने वाली, गुदगुदाने वाली या कम से कम कि जो परेशान तो न करे।
आजादी के संघर्ष और उसके बाद कम से कम 1980 तक बिहारी पत्रकारिता का स्वर्णयुग रहा है। सरस्वती अब लक्ष्मी के कैद में है और पत्र- पत्रिकाओं पर लक्ष्मीपतियों का राज है तो बेचारे पत्रकार करें तो क्या करें यह यक्ष प्रश्न उनके सामने है। पत्रकारिता एक मिशन है और इस मिशन में बाधक है लक्ष्मी के वाहन उल्लुओं का दल जिसे दिन के उजाले से डर लगता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, स्तम्भकार और मगही के साहित्यकार हैं। सम्पर्क : 8544027230
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