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Aajaadee ka amrit mahotsav : चार भाइयों ने एक साथ लड़ी थी अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई

 


चार भाइयों ने एक साथ लड़ी थी अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई

 करो या मरो गांधीज के आह्वान पर वारिसलीगंज थाना में आग लगा लिख दिया था अपना नाम

नवादा लाइव नेटवर्क। 

मगध प्रमंडल का नवादा जिला के वारिसलीगंज में निवास करने वालों का स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संभवत: वारिसलीगंज बिहार का पहला प्रखंड है जहां के कुल 55 स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओ ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ी जा रही स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया था। 

इसका सबसे बड़ा कारण रहा स्वामी सहजानंद सरस्वती का कर्म क्षेत्र होना। तब का वारिसलीगंज प्रखंड (अब का काशीचक प्रखंड) का रेवरा गांव किसान आंदोलन के प्रणेता स्वामी सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में किसान आंदोलन का बड़ा केंद्र रहा था। इलाके के कई घरों के पूरे परिवार स्वामी जी से प्रभावित होकर किसान आंदोलन से जुड़े हुए थे जो अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे।

इसमें मुख्य रुप से मकनपुर ग्रामीण साहित्यकार रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर के बड़े चाचा स्वर्गीय मिश्री सिंह तथा पिता स्वर्गीय नुनु सिंह, छोटे चाचा सह मकनपुर पंचायत के  पूर्व मुखिया लालो विद्यार्थी तीनों सहोदर भाई और चचेरे भाई स्वर्गीय राम रक्षा सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी जा रही स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को एक साथ मिलकर लड़ रहे थे। जिसमें लालो विद्यार्थी को छोड़ तीनों भाइयों को जेल की यातनाएं सहनी पड़ी थी। 

  

मिश्री सिंह

85 वर्षीय साहित्यकार रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर ने कहा कि 1942 में गांधी जी के करो या मरो के आह्वान पर क्षेत्रवासियों में जबरदस्त उबाल था। तीनों बड़े भाई सहित नालंदा जिला के नई पोखर निवासी एक आंदोलनकारी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। उनके नेतृत्व में सैकड़ों लोग सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में लगे हुए थे। आंदोलनकारी रेलवे लाइन उखाड़ने समेत स्थानीय थाना एवं डाकघर आदि को काफी नुकसान पहुंचा रहे थे। बड़े चाचा मिश्री सिंह व दो अन्य साथी मिलकर वारिसलीगंज थाना को आग के हवाले कर दिया था और जाते-जाते थाना के दीवार पर अपना नाम लिखकर मौके से फरार हो गए थे। 

घटना बाद चाचा को अंग्रेजों की पुलिस ने घर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। वैसे छोटे से मकनपुर गांव से कुल आधा दर्जन स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी हुए थे। जिनमें मिश्री सिंह, नुनु सिंह, राम रक्षा सिंह, राम लखन सिंह, सुखदेव सिंह का नाम शामिल है। 1939 में एक समय ऐसा आया था जब सुभाष चन्द्र बोस के आने की खबर बाद क्षेत्र के दर्जनों आंदोलनकारी योद्धा वारिसलीगंज रेलवे स्टेशन पर नेता जी के स्वागत में फुल माला लेकर एकत्रित थे।

 लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने नेताजी के आगमन पर रोक लगा दिया था। जब नेताजी के वारिसलीगंज नहीं आने की सूचना मिली, तब आंदोलनकारियों उग्र हो गए और स्टेशन पर तोड़ फोड़ के साथ ही रेल पटरी उखाड़  युवाओ विरोध प्रदर्शन किया। बाद में पुलिस करीब एक दर्जन से अधिक लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेजा था।

 







 




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