Nikay chunav 2022 : आसान भाषा में समझें नगर निकाय चुनाव के रास्ते में कहां फंसा है पेंच, क्या है ट्रिपल टेस्ट और डेडीकेटेड कमीशन
आसान भाषा में समझें नगर निकाय चुनाव के रास्ते में कहां फंसा है पेंच, क्या है ट्रिपल टेस्ट और डेडीकेटेड कमीशन
नवादा लाइव नेटवर्क।
बिहार में नगर निकाय चुनाव की तिथि का निर्धारण दूसरी बार कर दिया गया है। पहले फेज में 18 दिसंबर को वोटिंग और 20 को मतगणना बाद परिणाम घोषित होगा। इसी प्रकार दूसरे फेज में 28 दिसंबर को वोटिंग और 30 दिसंबर को वोटों की गिनती कर परिणाम का औपचारिक एलान होगा। लेकिन, पुनः चुनाव पर सस्पेंश कायम हो गया है।
कहां है पेंच
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की नई तिथि का एलान से संबंधित जो पत्र जारी किया गया है उसमें कहा गया है कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग जो की डेडीकेटेड कमीशन भी है, की रिपोर्ट आने के बाद चुनाव तारीखों का एलान किया गया है। मामला तब फंस गया जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया कि पिछड़ा वर्ग आयोग डेडीकेटेड कमीशन नहीं है। जब पिछड़ा वर्ग आयोग डेडीकेटेड कमीशन ही नहीं है तो उसकी रिपोर्ट ही कानून संगत नहीं रह गया। उसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर कोई फैसला ही नहीं लिया जा सकता है।
क्या है डेडीकेटेड कमीशन और ट्रिपल टेस्ट
बिहार के पहले भी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का मसला विवादित हुआ था। मामला सुप्रीम कोर्ट गया था। जहां न्यायदेश पारित हुआ कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके पहले ट्रिपल टेस्ट कराया जाए। ट्रिपल टेस्ट के लिए एक डेडीकेटेड कमीशन(समर्पित आयोग) बनाया जाए। कमीशन पिछड़ा वर्ग का सर्वेक्षण कर अपना रिपोर्ट देगी और यह भी सिफारिश करेगी की किस वर्ग को आरक्षण देना है और कितना देना है। एक शर्त यह भी कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो।
बिहार में हो गया खेला
पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप बिहार में न तो डेडीकेटेड कमीशन बना और न ही सही से ट्रिपल टेस्ट कराया गया। ट्रिपल टेस्ट पर सवाल इसलिए उठ रहा है की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। अलबत्ता,चुनाव तिथि का निर्धारण कर दिया गया।
मामला गया सुप्रीम कोर्ट
डेडीकेटेड कमीशन नहीं बनाने, ट्रिपल टेस्ट नहीं कराने, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों_निर्देशों का अनुपालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए सुनील कुमार नामक व्यक्ति चुनाव तारीखों का का एलान होने के बाद पहले सितंबर22 में ही सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने केस पटना हाईकोर्ट को भेजते हुए 23 सितंबर तक मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया था। सुनवाई बाद 4 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। जिसमें कहा गया था कि निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं हुआ। इसके बाद चुनाव टल गया था।
सरकार फिर गई हाईकोर्ट
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद राज्य सरकार पुनः हाईकोर्ट गई। 19 अक्टूबर को सरकार ने हाईकोर्ट को आश्वस्त किया कि हम डेडीकेटेड कमीशन का गठन कर रहे हैं। ट्रिपल टेस्ट कराएंगे। सरकार के इस आश्वासन पर हाईकोर्ट ने कमीशन गठन और ट्रिपल टेस्ट करा चुनाव कराने का आदेश दे दिया।
सरकार कर गई खेला
बाद में सरकार खेला कर गई। डेडीकेटेड कमीशन की जगह राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दी। आरोप है कि आयोग में सरकार राजनीतिज्ञों को बैठा दी। जिसके खिलाफ सुनील कुमार फिर सुप्रीम कोर्ट चले गए। 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनते हुए सरकार को नोटिस जारी किया और पिछड़ा वर्ग आयोग को डेडीकेटेड कमीशन मानने से इंकार करते हुए उसके कार्यों पर रोक लगा दिया।
सरकार तक यह आदेश पहुंचता इसके पहले बात मीडिया में आ गई। इसके बाद सरकार की सहमति से राज्य निर्वाचन आयोग ने बिना समय गंवाए चुनाव की नई तारीखों का एलान कर दिया। ऐसे में मामला फिर से फंस गया है। हाईकोर्ट में फिर से याचिका दायर की गई है। 6 दिसंबर को सुनवाई मुख्य न्यायाधीश को करना है। सुनील कुमार का केस देख रहे सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट राहुल भंडारी ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से अबतक जो कुछ किया गया है, उसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा जाएगा। अबतक जो भी हुआ उसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायदेशों का अनुपालन नहीं हुआ है।
सबसे बड़ा सवाल
राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव की नई तारीखों का एलान करते हुए कहा कि डेडीकेटेड कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर चुनाव कराने का निर्णय लिया गया है। लेकिन, वह रिपोर्ट है कहां, अबतक किसी ने देखा तक नहीं। कायदे से रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए था। अब कोई कैसे एतवार करे कि रिपोर्ट तैयार हो ही गई है।
बता दें कि राज्य में निकाय चुनाव में अति पिछड़ा वर्ग को 20 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। जबकि, अनुसूचित जाति/जनजाति को आबादी के अनुरूप आरक्षण का लाभ मिला है।
सरकार क्यों नहीं बना रही डेडीकेटेड कमीशन
सरकार द्वारा डेडीकेटेड कमीशन नहीं बनाने के पीछे वोट बैंक का खेल माना जा रहा है। सरकार फिलहाल उन्हीं पिछड़ों को निकाय चुनाव में आरक्षण दे रही जो बिहार में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन के लिए अति पिछड़ा वर्ग में शामिल है। सरकार को डर है की निष्पक्ष डेडीकेटेड कमेटी होगी तो उसका रिपोर्ट एक नया बखेड़ा खड़ा कर सकता है। वर्तमान की कुछ लाभान्वित जातियां दायरे से बाहर हो सकती है, तो कुछ नई जातियों को लाभ के दायरे में शामिल किया जा सकता है। ऐसे में नया विवाद खड़ा होगा और वोट बैंक पर असर पड़ेगा।
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