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Hindi Diwas : देश-विदेश के विद्वानों ने भारत में हिंदी की उपेक्षा पर जताई चिंता, हिंदी दिवस पर, आन लाइन कार्यक्रम में एक दर्जन से अधिक हिंदी भाषा के मूर्धन्यों ने रखी अपनी बातें



देश-विदेश के विद्वानों ने भारत में हिंदी की उपेक्षा पर जताई चिंता, हिंदी दिवस पर, आन लाइन कार्यक्रम में एक दर्जन से अधिक हिंदी भाषा के मूर्धन्यों ने रखी अपनी बातें 

राष्ट्रीय क्षितिज पर हिंदी का बहुआयामी स्वरूप, बावजूद अपने ही देश में है उपेक्षित : रत्नाकर

नवादा लाइव नेटवर्क।

विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन नीदरलैंड, विश्व हिंदी परिषद, नई दिल्ली, आचार्यकुल और विश्व मगही परिषद भारत के संयुक्त तत्वाधान में हिंदी का वैश्विक स्वरुप  विषय पर अंतरराष्ट्रीय आन लाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें देश विदेश के प्रतिष्ठित हिंदी मगही के विद्वानों ने अपनी बातें रखी और हिंदी के विकास को ले हर संभव मदद का आश्वासन दिया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी भाषा के मर्मज्ञ डा.शकुंतला सरूपरिया और विश्व मगही परिषद् के अंतरराष्ट्रीय महासचिव प्रो.नागेन्द्र नारायण ने संयुक्त रूप से किया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति प्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी यंत्र_मंत्र_तंत्र के साथ साथ आपस में जोड़ने की भाषा है। वही भारत से जुड़े हिंदी मगही के वरिष्ठ साहित्यकार रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर ने कहा कि राष्ट्रीय क्षितिज पर हिंदी बहुआयामी स्वरूप में स्थापित है। बाबजूद हमारे देश की सरकार को हिंदी के विकास के लिए और कार्य करने की आवश्यकता है। 

कहा गया कि आज भी भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। बावजूद अभी भी संभवत देश के सभी हिंदी भाषा का उपयोग किए जाने वाले राज्य में आम आवाम की सेवा के लिए कार्यरत सरकारी कार्यालयों में अंग्रेजी का उपयोग किया जाता है जो दुखद है। जिस कारण देश के गरीब और हिंदी भाषियों को अपने कार्यों को निपटाने में परेशानी होती है। 


हिंदी छोड़ने का मतलब अपनी विरासत को हाशिए पर खड़ा करना 

हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन ,नीदरलैंड की अध्यक्षा प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि हिंदी भाषा की उपेक्षा के कारण हमलोगों का जीवन विस्थापित हो गया है। हिंदी को छोड़ने का अर्थ है कि हम अपनी भारतीय संस्कृति के विरासत को हाशिए पर कर रहे हैं। हिंदी की महता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि घर ईंटों से नहीं बनता है। बल्कि भाषा से बनता है। हिंदी ही हमारी संस्कृति की वाहिका है, संवाहिका है।

ताशकंद राजकीय प्राच्य विद्या संस्थान, उज्बेकिस्तान  की प्रो. उल्फत मुखीबोवा ने हिंदी तथा हिंदी के माध्यम से अपने भारत प्रेम को बताया। साथ ही उन्होंने प्रेमचंद तथा उज्बेकिस्तान के प्रेमचंद अब्दुल कहार के साहित्य की तुलना की तथा बताया की सांस्कृतिक रूप से भारत तथा उज्बेकिस्तान कितने निकट हैं।

हिंदी के अभाव में हमारे रिश्ते समाप्त होता जा रहा है : सांसद

कार्यक्रम की शुरुआत राजकुमार प्रसाद द्वारा सरस्वती वंदना से की गई। स्वागत वक्तव्य हिंदी के राष्ट्रदूत के रूप में काम कर राष्ट्रीय महासचिव विश्व हिंदी परिषद् के डा. बिपिन कुमार ने किया। उद्घाटन वक्तव्य देते हुए हरियाणा से राज्य सभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने हिंदी की वैज्ञानिकता पर जोर देते हुए कहा कि विश्व में हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा है जो लिखी जाती है, वही बोली जाती है, और जो बोली जाती है वही लिखी जाती है। व्यवहार में हिंदी से दुर होते समाज को देखकर सांसद की पीड़ा दिखी। कहा कि हिंदी के अभाव में हमारे रिश्ते, गणित, संगीत सब समाप्त हो रहा है। ऐसे में हिंदी को छोड़ना हमारे समाज के लिए घातक हो रहा है। 

अंत में धन्यवाद् ज्ञापन चीन के प्रो.डा. विवेक मणि त्रिपाठी ने किया। प्रो नागेंद्र नारायण ने बताया के आज से विश्व में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए हिंदी है हम कार्यक्रम आयोजित करेंगे।




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