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Special Report @ Rajgir : आर्यावर्त में राजगीर पावन हे : रामरतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर'

  


मलमास @ राजगीर। 

आर्यावर्त में राजगीर पावन हे : रामरतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर'


नवादा लाइव नेटवर्क

आर्यावर्त में राजगीर पावन आउ मनभावन तीर्थ स्थल आउ पर्यटक स्थल हे, राजगीर के पांच नाम हे आउ नाम से अलग-अलग काल में राजगीर के महत्व हल। 

राजगीर के सबसे पुरान नाम “वसुमति" हे। वसु प्रतापी राजा हला। कई पुराण में कहल गेल हे कि वसु ब्रह्मा के पुत्र हला। आउ ओहे राजगीर बसैलका हल, ई गुना वसुमती सबसे पुरान नाम हे। महाभारत आउ भागवत पुराण के अनुसार जमदग्नि ऋषि के पांच पुत्र में वसु आउ विश्वावसु बड़ा हला आउ भगवान परशुराम सबसे छोटा हला। इ बात से स्पष्ट होवे हे कि वसुमती राजा वसु बसैलका हल । दोसर नाम हे "बृहदर्थपुरी"। वसु के बाद राजा बृहदर्थं राजगीर के राजा होला हल। बृहदर्थ प्रतापी राजा हला आउ वैदिक धर्म मानो हला। श्रीमद्भागवत पुराण आउ महाभारत के अनुसार बृहदर्थ तीन अक्षौणी सेना के स्वामी, वीरमानी, रूपवान, धनवान, शक्ति सम्पन्न आउ याज्ञिक हला, ऊ समय राजगृह बृहदर्थ पुरी के नाम से राजनगर आउ वैदिक देवता सबके निवास स्थल के नाम से प्रसिद्ध हो गेल हल। बाद में बृहदर्थ राजा के पुत्र जरासंध होला हल आउ मगध के राजनगर बृहदर्थपुरी के शक्ति सम्पन्नता देख के क्षत्रिय नरेश सबके मन में लोभ आउ जलन के भाव उत्पन्न हो गेल हल। जरासंध राजा से भगवान कृष्ण बैर रखो लगला आउ पांडुपुत्र युद्धिष्ठिर के राजाधिराज बने में मगध सम्राट के रास्ता के पत्थर मानो लगल। ओ हे साजिश के तहत ब्राह्मण रूप धारण करके कृष्ण के नेतृत्व में भीम आउ अर्जुन बृहदर्थपुरी पधारलका हला जैहीना तीनों क्षत्रीय नरेश ब्राह्मण रूप धारण करके अइला हल तहिना ब्रह्मर्षि राजकुमार जरासंध वैदिक रीति से प्रजा के सुख समृद्धि लेल उपवास में हलथीन राजा जरासंध बोलला कि ब्राह्मण के भेष बना करके अएला हे आउ अगर भिक्षा मांगवा तो हम अत्यन्त प्यारा दुस्त्याज्य शरीर भी बिना हिचकिचाहट के दे देम। 

ई बात से स्पष्ट हो जा है कि ब्रह्मर्षि राजा जरासंध उदार राजा हा आउ उनकर मन में ब्राह्मण सबके प्रति भारी सम्मान के भाव हल वहीं वासुदेव श्रीकृष्ण के सामने होला के बाद जरासंध से बोलला कि राजन तो तो क्षत्रीय राजा सबके बलिदान देवे लेल बन्दी बना के रखले हका सर्वश्रेष्ठ राजा होवे के बाद भी तो क्षत्रीय राजा सब के नाश करे लेल चाही हका। ई गुना हम क्षत्रीय जाति के अभिवृद्धि के लेल तोहरा बध करेके निश्चय से यहां अयलूं हे, तो जे घमण्ड में फूलल हा कि तोहरा जैसन कोय योद्धा क्षत्रीय जाति में नय है, इ तोहर भ्रम है।

वासुदेव श्रीकृष्ण के कथन से स्पष्ट हो जाहे कि भगवान श्रीकृष्ण जातिगत भावना के शिकार हो के बिना कोई झगड़ा के राजा जरासंध से बैर कइलका हल आउ मगध के राजनगर में रखल तहीना के वैज्ञानिक साजो समान के प्रति लालच कइलका हल ।

महाभारत के अनुसार भीमसेन आउ जरासंध के बीच 28 दिन तकल मल्लयुद्ध होल हल, उ मल्लयुद्ध देखे लेल 33 कोटि के देवी देवता यहां अयला हल। यहां ई स्पष्ट होवे हे कि मगध के राजनगर तहिना के बृहदर्थपुरी जगत के सबसे शक्ति सम्पन्न राजनगर हल आउ ब्राह्मण होने के बाद भी जरासंध राजा हला उ गुना भागवत धर्म जे वर्णानुसार व्यवस्था हल के विरोध में ब्राह्मण होबे के बाद भी राजा हला, ई गुना हस्तीनापुर आउ भगवान श्रीकृष्ण के आंख के किरकिरी बृहदर्थपुरी हो गेल हल।


वासुदेव श्रीकृष्ण के छल से जरासंध वध के बाद बंदी क्षत्रीय राजा के मुक्ति के बाद वैशम्पायन जी जनमेजय से कहलका कि बृहदर्थपुरी में रखल क जमाना के सबसे नामी सौदर्यवान रथ जेकरा पर एक साथ दू योद्धा बैठके युद्ध करो हला पर भगवान श्रीकृष्ण के गिद्धदृष्टि गेल आउ वासुदेव श्रीकृष्ण, भीमसेन आउ अर्जुन के साथ रथ पर चढ़के हस्तीनापुर रमाना हो गेला। महाभारत के सभा पर्व में लिखल है कि ई रथ वैदिक देवता इन्द्र मगध देश के राजनगर के राजा वसु के देलका हल, वसु राजा अप्पन पुत्र बृहदर्थ के देलका हल आउ बृहदर्थ राजा अप्पन पराक्रमी पुत्र राजा जरासंध के देलका हल।

महाभारत में सौदर्यवान रथ से भी स्पष्ट हो जाहे कि जरासंघ ब्रह्मर्षि राजा हला आउ जमदग्नि ऋषि के वंश के हला, ई वंश के पक्षपाती सब दिन भगवान इन्द्र हला, आउ ई वंश की जरासंध होला हला ई गुना जे काम भगवान परशुराम क्षत्रीय राजा सब के समाप्त करके कयलका हल आहे जरासंध भी कयलका हल ई गुनी श्रीकृष्ण से बैर हो गेल हल, मुदा भगवान श्रीकृष्ण के मानो पड़ल कि ब्रहार्षि राजा के राजनगर सदा शान्ति आउ प्रेम के स्थल रहल हे।

 श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार बृहदर्थ वंश के 23 राजा सब मगध के गद्दी पर बैठला हल, अन्य पुराण आउ सांस्कृतिक इतिहास से स्पष्ट हो वो हे कि बृहदर्थं वंश के शासन 940 वर्ष तकल महाभारत युद्ध के बाद भी कायम रहल आउ ई वंश के कुल चालीस राजा होला हे। ई वंश के विशेषता है कि राजा बने लेल झगड़ा नय होल मुदा क्षत्रीय नरेश के राजनगर में भाय-भाय के बीच राजा होवे लेल मानव जाति के विनाशक महाभारत जैसन युद्ध होल हल।

वसुमति, बृहदर्थपुरी के गौरवमय इतिहास के मूक साक्षी राजगीर बनल रहल हे के समय राजगीर के स्वर्ण युग मानल गेल हे।

एक हजार वर्ष तकल ब्रह्मर्षि राजा सबके राजनगर के रूप में वसुमति या बृहदर्थपुरी नाम सव जगह फैलल आउ ई स्थान आकर्षण के केन्द्र बनल रहल। शान्ति भाय चारा आउ विकास के शक्ति संमपन्नता के नाम पर वसुमति जगत के महत्वपूर्ण राजनगर के गौरव प्राप्त कयलक हल।

ब्रह्मर्षि राजा सबके राज समाप्त होला के बाद बिंबिसार मगध के राजा हो गेला। बिंबिसार के राजा होवे के बाद बृहदर्थपुरी के जगह राजगृह नाम के प्रचलन होल, राजगृह के तात्पर्य हे राजा के घर या निवास स्थल। इतिहासकार मानो हका कि बिंबिसार क्षत्रीय राजा हला आउ हस्तीनापुर के संस्कृति के प्रभाव राजगीर पर स्पष्ट देखे के मिलो लगल समय ऊ भी आल कि बिंबिसार के बेटा अजातशत्रु राजगृह के गद्दी पर अप्पन बाप के जेल में बन्द करके बैठ गेला। बाप बेटा के बीच संघर्ष के कारण राजगृह के शान्ति भंग होल आउ सुख आउ शांति जे मगध में हल, अव्यवस्था के दौर के शिकार हो गेल। भारत के इतिहास में ईसापूर्व छठी शताब्दी में राजगृह चिंतक सबके पावन स्थल बन गेल, मानव जाति के उज्ज्वल भविष्य पर सोंचे आउ विचार करे वाला संत, ऋषि आउ मुनि राजगृह के अप्पन स्थल मानो लगला बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध का राजगृह पसन्द हल, ऊ बराबर राजगृह आबी हला राजगृह के कई विद्वान चिंतक उनखर अनुयायी बन गेला। बौद्ध साहित्य में तो मानल जा हे कि बिंबिसार आउ अजातशत्रु भी बौद्ध धर्म मान लेलका हल मुदा- जैन सब मानो हका कि अजातशत्रु महावीर स्वामी के समकक्ष हला।

राजगृह के नाम से प्रसिद्ध स्थल राजनगर के साथ सांस्कृतिक संगम स्थल के रूप में जानल गेल आउ धार्मिक सुधार आन्दोलन के केन्द्र राजगृह बन गेल। मानल जा हे कि रात्नागिरि आउ वैभार गिरि जेकरा पश्चिम के पर्वत भी आस-पास के लोग कहो हका पर बौद्ध विद्वान सब के बैठकी होल हल, इ बात के पुष्टि वैभार पर्वत पर बनल चौताल से होवो हे ऐकरा बौद्ध बैठकी के नाम से महत्व है। मानल जा हे कि मगध के राजा बिंबिसार वेणुवन विहार उपहार में भगवान बुद्ध के देलका हल राजगृह राजनगर जैन, बौद्ध, वैदिक चिंतक सबके लेल आकर्षण केन्द्र हो गेल आउ ईसापूर्व छठी शताब्दी में राजगृह भारत के सांस्कृतिक राजधानी के गौरव प्राप्त कयलक।

राजगृह के एक नाम गिरिव्रज भी हे। गिरि पर्वत के कहल जा हे आउ ब्रज घर के या निवास स्थल के मानल जा हे। पांच पर्वत से घिरल स्थल के गिरिब्रज कहल जा हे। रामायण में लिखल गेल हे कि गुरु वशिष्ठ के साथ राम-लक्ष्मण जब मिथिल जा रहला हल तो सोन नदी के पास से गुरु वशिष्ठ राम-लक्ष्मण के पांच पर्वत से घिरल गिरिब्रज देखेलका हल । महाभारत में भी भगवान श्रीकृष्ण कहलका कि पांच पर्वत के शिखर खड़ा होके मानो गिरिब्रज के रक्षा कर रहला हे। राजगृह के एक नाम गिरिब्रज भी हे आउ ओकर कारण ऐकर प्राकृतिक बनावट के मानल जा हे।

सातवीं शताब्दी के आस-पास जब चीनी तीर्थ यात्री हुएनसांग नालन्दा में रहे लगला तब ऊ राजगृह भी पधारलका हल आउ अप्पन यात्रा वृतांत में राजगृह के एक आउर नाम कुशाग्रपुर लिखलका हे। मानल जा हे कि ऊ समय कुश घास के भरल रहे के कारण कुशाग्रपुर नाम के प्रचलन हल। राजगृह के इतिहास आउ संस्कृति के जानकर मानो हका कि विभिन्न काल में राजगृह के नाम बदलल आउ आज कल राजगीर नाम से जानल जा रहल है।

पांच पर्वत

राजगीर के एक नाम गिरिब्रज हे, "गिरि" पर्वत के कहल जा हे, रामयण आउर महाभारत में गिरिब्रज पर्वत के चर्चा हे। राजगीर के पांच पर्वत, वन, वृक्ष, लता सबसे भरल है, नयनाभिराम सौंदर्य से यात्री सबके मन भर जा हे। राजगीर के पांच पर्वत महज पत्थर के ढेर के कारण नय ऋषि, मुनि, तपस्वी सबके स्थल होवे के कारण हिन्दू, बौद्ध आउर जैन मतमादी सबके लेल पवित्र देवालय हे, ऐ हे गुना गिरिब्रज आवे के बाद लोग पर्वत पर कष्ट सह के चढ़ो हका आउर अप्पन मन के देव ऋषि-मुनि के स्थल के सामने अराधना करो हका आउर अतीत के तरफ देख के वर्तमान बनावे लेल संकलप ले हका।

राजगीर के पांच पर्वत में विपुलागिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, स्वर्णगिरि आउर वैभारगिरि पर्वत हे।

विपुलागिरि पर्वत के जैन साहित्य में प्रथम पर्वत कहल जा हे, आस-पास के लोग पूरब के पर्वत कहो हका। ई पर्वत पर चढ़े लेल सूरज कुण्ड के पास से सीढ़ी बनल हे। पर्वत पर नया और पुरान मन्दिर हे। दिगम्बर जैन परम्परा के मान्यता हे कि श्रमण भगवान महावीर के प्रथम समवसरण ये हे पर्वत पर लगल हल आउर गणधर गौतम आदि ग्यारह गणधर सब के दीक्षा ऐ हे पर्वत पर होल हल। भगवान महावीर के प्रथम देशना भूमि होवे के कारण दिगम्बर समाज ने भगवान महावीर के 25वीं निर्माण शताब्दी के मौका पर समसरण मन्दिर के निर्माण कयलका हे। ई मन्दिर में भगवान महावीर के ध्यान मुद्रा में लाल पत्थर से निर्मित चार मूर्ति स्थापित हे। विपुलागिरि पहाड़ पर जैन मुनि सबके चरण चिन्ह अंकित हे। जैन भक्त चरण के पूजा करो हका आउर चरण के स्पर्श पाके धन्य अपने के मानो हका। जैन मुनि सबके चरण अढ़ाई हजार वर्ष के अतीत के याद ताजा करो हके ई याद के स्थायी रूप देबे लेल जैन समाज के तरफ से पचास लाख के लागत पर विपुलागिरिक चोटि पर निर्मित मन्दिर प्राचीन स्थल पर नयापन के बोध करावो हके।

विपुलागिरि पहाड़ के तलहटी में वैदिक देवता सूरजदेव के कुण्ड पवित्र स्थल हे। सूरज कुण्ड के गरम जल में स्नान करके हिन्दु अपने के धन्य मानो हका।

विपुलागिरि पहाड़ वृक्ष, लता आउर घास से भरल हे, ई गुना प्राकृति के सुन्दर रूप के भी दर्शन होबो हके।

राजगीर के पांच पहाड़ में हिन्दु, जैन आउर बौद्ध सब लेल वैभार पहाड़ महत्त्वपूर्ण देवालय मानल जा हे। वैभारगिरि पहाड़ के आस-पास के लोग पछिम के पर्वत कहो हका। ई पर्वत पर मगध देश के सबसे पुरान शिव मन्दिर हे। ई शिव मन्दिर के स्थापत्य स्पष्ट करो हके कि मन्दिर पुरान हे। धार्मिक मान्यता हे कि वैदिक धर्म माने बाला मगध देश के प्रतापी राजा जरांध के अच्छा काम से खुश होके कैलाश पर्वत से भगवान शिव वैधार पर्वत पर पधार करके राजा जरासंध के दर्शन देलका हल, मानल जा है कि ई शिवलिंग भक्त के पास भगवान के पधारे के उदाहरण हे।

महाभारत के वन पर्व में कहल गेल हे कि चण्ड कौशिक मुनि के वरदान के कारण भगवान शिव खुद राजगीर अयला हल आउ जराजा, जरासंध के वरदान देलको हल तहिने कई देश के राजा सबके साथ वैभार पर्वत पर राजा जरासंध शिवलिंग आउर शिव मन्दिर वनौलका हल ई गुना शक्ति, धन आउर रूप चाहे वाला वैभार पर्वत वाला बाबा पर ब्रह्मकुण्ड के गरम जल चढ़ावो हका आउर पुण्य के भागीदार बनो हका।

वैभार पर्वत पर सप्तपर्णी गुफा हे, ई गुफा के संबंध में मान्यता हे कि ऐकरा में बैठके ऋषि-मुनि साधना करो हका। ई गुफा अन्दर थोड़ा आगे बढ़े के बाद संकीर्ण हे मुदा प्राचीन मान्यता है कि गुफा के एक दरवाजा गया में खुली हक देवता अन्दर अन्दर से भ्रमण करते रहो हका। मान्यता ऐ हे कि सप्तपर्णी गुफा सप्त ऋषि के विश्राम करके स्थल हे।

मगध के आउर राजगीर के इतिहास जानेवाला मानो हका कि वैभार पर्वत के चौताल पर राजा जरासंध के पिता के श्राद्ध में भाग लेवे वाला चेतनशील ब्राह्मण जे कृष्ण के नय जरासंघ के अपना मनो हला आउर पुरोहित ब्राह्मण के रोकावट के बाद भी राजा बृहदर्थ के श्राद्ध में भाग लेलका हल के बैठकी होल हल आउर राजा जरासंघ आउर उनखर समर्थक राजा सब बोलला कि बिना साधन के खेती कैसे होयत राजन, ऐकरा पर राजा जरासंध धरती देलका, आउर तालाब बनावे के आउर खेती के साधन देलका तहिने से ब्राह्मण वर्ग में विभाजन हो गेल आउर जरासंध के समर्थक ब्राह्मण खेती के अप्पन के साधन बनौलका। ई गुना वैभार पर्वत आउर ऐकर चौताल महत्त्वपूर्ण स्थल हे।

मगध देश में खेती के विकास के काम वैभार पर्वत पर राजा जरासंध के बैठकी में तय भेल, ई गुना ई चौताल कृषि विकास के साधना भूमि आउर मार्ग दर्शन भूमि मानल गेल।

राजगीर के पर्वत माला में रत्नागिरि आउर गृद्धकूट पहाड़ बौद्ध धर्म के लेल पावन स्थल हे, कहल जा हे कि गृद्धकूट भगवान बुद्ध के निवास स्थल हल, ऐता पत्थर के बनल चौताल पर बैठके भगवान बुद्ध उपदेश देलका हल, ई गुना ई पर्वत महत्त्वपूर्ण हे, गृद्धकूट पहाड़ के पास रत्नागिरि चोटि हे, बौद्ध साहित्य में रत्नागिरि के भारी महत्व हे, ई गुना जापान के बौद्ध संघ के आदरणीय फूजी गुरु जी के प्रयास से वर्ष 1969 में पहाड़ के 160 फीट पर विश्व शान्ति स्तूप बनावल गेल, तहिना से विश्व शान्ति स्तूप राजगीर के ऐगो पहचान बन गेल हे। विश्व शान्ति स्तूप पर भगवान बुद्ध के चार विभिन्न मुद्रा में सोना के पानी चढ़ावल मूर्ति हे, पास में एगो छोटा मन्दिर हे जेकरा में बौद्ध साधक पूजा रोज करो हका। 

रत्नागिरि पहाड़ दर्शन चीनी यात्री फाहियान कलयका हल मुदा महज बुद्ध के बैठकी आउर प्राकृतिक सौंदर्य के चरचा कहलका हल। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री हुएनसांग रत्नागिरि के देवालय मानलका आउर पहाड़ पर शान्ति के अहसास कयलका हल । 

वर्तमान में रत्नागिरि पहाड़ यात्री सबके लेल आकर्षक स्थल हे, पहाड़ पर चढ़े लेल रज्जू मार्ग बनल हे, रत्नागिरि पहाड़ महज बौद्ध भक्त लेल नए सबके लेल महत्त्वपूर्ण स्थल हे आउर रज्जू मार्ग के यात्रा कौतुहल पैदा करो हके।

राजगीर कुण्ड से दखिन वनगंगा के राह में राजगीर से गया जाय वाला यात्री सबके पर्वत पर पाषाण प्रकार के भग्नावशेष के दर्शन होवो हके, ई पहाड़ के उदयगिरि कहल जा हे। जैन साहित्य में उदयगिरि पहाड़ के पास जैन धरम के बीसवे तीर्थकर सुब्रत के जन्म भूमि मानल जाहे, ई गुना उदयगिरि पहाड़ के बड़गो महत्व है। उदयगिरि पहाड़ पर जैन समुदाय के मन्दिर हे, शहर से दूर होवे के कारण उदयगिरि के संबंध में कम जानकारी हे, मुल उदयगिरि पहाड़ पर जैन तीर्थ यात्री चढ़ना अप्पन धार्मिक अनुष्ठान मानो हका। पर्वत खड़ा है लेकिन सीढ़ी बनावल गेल हे।

राजगीर के पांचवां पहाड़ स्वर्णगिरि हे ई पहाड़ खड़ा हे, ई गुना चढ़ाई कठीन हे, ई पार्वत पर ऐगो शिव मंदिर आउर एक दिगम्बर आउर एक श्वेताम्बर जैन मन्दिर है। पहाड़ के प्राकृतिक सौंदर्य नयनाभिराम हे आउर बृक्ष लता, घास से भरल पर्वत पर कम लोग जा पावो हका। 

राजगीर के पांच पर्वत, राजगीर के इतिहास, संस्कृति के लेल महत्त्वपूर्ण देवालय हे आउर बिना पहाड़ दर्शन के राजगीर दर्शन अधूरा हे।

वैतरणी के पांच नाम

भारतीय इतिहास में नदी सबके बड़गो महत्व हे। नगर उपनगर के नाम पहिले नदी के नाम से जानल जा हलय ऐ गुना राजगीर के साथ भी ऐगो नदी के नाम जुटल हे। ई नदी के वनगंगा, सुमागधी, सरस्वती, पताल गंगा आउर वैतरणी नाम से जानल गेल हे। वन गंगा से मतलब हे, वन के बीच गुजरे वाली गंगा से ई नदी राजगीर पर्वत माला खास करके विपुलागिरि आउर वैभर पर्वत के बीच घाटी से गुजर करके वर्तमान के ब्रह्म कुण्ड के पूरब प्रवाहीत होबे के चर्चा हे। मानल जा हे कि गृद्धकूट पर्वत के नीचे से प्रवाहित शीतल जल पांच पर्वत वन के बीच वर्षा होवे के जल नदी के रूप में प्रवाहित होवो हल। वर्तमान में मनीयार मठ के दखिन के हिस्सा के वनगंगा कहल जा हे। कई विद्वान ई नदी के नाम पताल गंगा के रूप में चर्चा कयलका हे। ई नदी के उद्गम तो पर्वत के तलहट्टी है। कई विद्वान मानो हका कि वनगंगा आउर पताल गंगा में कई पवित्र नदी के जल प्रवाहित होवो हल। भूगोल के जानकार मानो हका कि पांच पर्वत के वर्षा के ऊपरी जल के अलावे पर्वत से रिस-रिस करके जल प्रवाहित होवो हे कमोवेश आझ भी जल प्रवाहित होवो हके आउर नदी होवे के पहचान कायम है। वायु पुराण में सुमागधी नदी के नाम आल है। 

सुमागधी नदी कौन हे, ऐकरा में विद्वान सब में मतभेद हे, मुदा मानल जा हे कि मगध के राजनगर राजगीर के आस-पास सुमागधी नामक नदी हल। सुमागधी से तात्पर्य मानल जा हे कि एैसन नदी जेकर जल सुगंधीत हल। लोग कहो हका कि पांच पर्वत के बीच प्रवाति होवो वाला नदी में घाटी के सुगंधीत फूल गिरते रहो हल ऐकरा से जल सुगंधीत हो गेल हे। नदी के बारे में खोज हो रहल है। ई नदी के एक नाम सरस्वती भी हे। सरस्वती नाम के प्रचलन आज भी हे। ई नदी घाटी से चलकर जरादेवी के वर्तमान मन्दिर तक साफ दिखायी पड़ो हके आउर गर्मी के मौसम में भी थोड़ा जल रहो हके। राजगीर में श्राद्ध करोवाला सब ई जल के उपयोग करो हका ऐता पर श्मशान भी हके। सरस्वती नाम के चर्चा कई विदेशी जानकर भी कयलका हे। मानल जा हे कि देवी सरस्वती के ऐगो मन्दिर ई नदी के किनारे हल। सरस्वती तो विद्या देवो वाली देवी हका, ई गुनी मानल जा हे कि सरस्वती के मन्दिर होवे के कारण ई नदी के नाम सरस्वती पड़ गेल।

ई नदी के पताल गंगा भी कहल जा हल कारण पर्वत के तलटी से अज्ञात जलभण्डार से अनवरत रूप से रिस-रिस के निकलनेवाला जल घाटी के बीच आके नदी के रूप में प्रवाहित होवो वाली नदी के पताल गंगा मानल गेल हे। पताल गंगा के संबंध में मान्यता हे कि ई नदी में पांच पवित्र नदी के जल मिलल हे, जेकरा में गंगा जल भी हे।

राजगीर के बीच से गुजरेवाली नदी के किनारे में प्राचीन राजनगर के बात जैन साहित्य में मानल गेल हे। वायु पुराणमें मगध के पांच पवित्र स्थल में राजगीर नाम भी गिनावल गेल हे वायुपुराण में वैतरणी नदी के चर्चा हे। वायुपुराण के मान्यता हे कि राजगीर महज पधारला से वैतरणी में स्नान करे से मोझ के प्राप्ति होवो हे।

वैतरणी नदी के पवित्र नदी के रूप में गुरुनानक देव जी भी मानलका हल आउर वैतरणी के तट पर शान्ति के संदेश देलका हल ई गुना वैतरणी नाम के चर्चा सिख साहित्य में आल हे।

1812 ईसवी में फ्रांसेस बुकानन राजगीर पधारलकाहल तब ऊ देखलका हल कि ब्रह्मकुण्ड के पास ऐगो नदी के घाट पर लोग गाय के पूंछ पकड़कर ई पार से ऊ पार होवो हला।

वैतरणी घाट के पास भगवान श्रीकृष्ण के नया छोटा मन्दिर हला वैतरणी घाट पर ब्राह्मण सब भवसागर पार करावे लेल पूजा पाठ करो हला, ई गुना वैतरणी नदी के पवित्र नदी मानल गेल हे वैतरणी नदी पार करके भक्त ब्रह्म कुण्ड आउर सतघरवा कुण्ड में स्नान करो हला। ई गुनी वैतरणी नदी महत्वपूर्ण हल।

राजगीर के सांस्कृतिक इतिहास में एक नदी के पांच नाम से कालबोध होवो हके आउर ई माने के आधार हे कि राजगीर सनातन हिन्दू सब लेल सदा महत्त्वपूर्ण हल ई गुना ई नदी के पांच नाम सब हिन्दू नाम से आउर ई नदी के वैतरणी नाम से प्रचलन होवे के समय महत्व हल आउर नदी पार करके धार्मिक विधान बन गेल हल। कहल जा हे वैतरणी पार होवे से लोग भवसागर पार कर जा हका।

महाभारत काल से अंग्रेज शासन व्यवस्था के बीच भागवत धर्म के प्रचारक वासुदेव श्रीकृष्ण के ऐगो मन्दिर होवे के चर्चा हे मुदा ई ढंग के मन्दिर के कहीं नामोनिशान तकल नय हे।

नदी संस्कृति के वाहक मानल गेल हे, ई गुना एक नदी के पांच नाम भी बहुत कुछ व्यक्त करो हके।

मोबाईल - 8544027230

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