Nawada news : रुनकी झुनकी बेटी मांगी..., सूर्योपासना का महापर्व छठ पर रामरतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर' की खास रिपोर्ट...!
रुनकी झुनकी बेटी मांगी..., सूर्योपासना का महापर्व छठ पर रामरतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर' की खास रिपोर्ट...!
नवादा लाइव नेटवर्क।
वैदिक साहित्य में सूर्य सर्वाधिक प्रत्यक्ष देव हैं, अतः उनका प्राकृतिक व्यक्तित्व स्पष्ट निर्दिष्ट और तेजस्वी का है। सूर्य दीर्घदर्शी हैं, दिव्य प्रकाश हैं। अंधकार को दूर भगाने की शक्ति के कारण भूत चुड़ैल उनसे दूर भागते हैं। सूर्यदेव भौतिक सूर्य के प्रतिनिधि हैं तो सविता उनकी प्रेरक शक्ति हैं, सविता स्वर्णिम हैं, नेत्र, हाथ, जिह्वा और भुजाएँ सभी स्वर्णिम हैं।
सविता भगवान सूर्य का ही एक नाम है। संस्कृत साहित्य एवं पुराणों में सूर्य का 109 नाम गिनाया गया है। यथा, आदित्य, सविता नाम से अधिक छठ के गीत गाये जाते हैं। सविता नाम सूर्य की एक विशेष अवस्था का नाम है, वह अवस्था प्रारंभिक या उदीयमान या उदयकालीन की है यह रूप मनोहर, आकर्षक एवं दर्शनीय होता है। इस उदयकालीन अवस्था में सविता सूर्य का रूप देखते ही बनता है, सविता की यह स्थिति लगभग आधे घंटे तक रहती है। व्रतधारी सविता की अर्चना और वंदना करते हैं।
वैदिक साहित्य के अनुसार सविता के इस मनभावन रूप के दर्शन स्वप्रकाश, रोग मुक्ति के साथ-साथ पुष्टि कारक और स्वास्थ्य वर्द्धक है। खगोलविदों के अनुसार सूर्य हमसे 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका व्यास 13 लाख 12 हजार किलोमीटर और इसका कुल भार पृथ्वी से 330000 गुणा है। यदि हमारे सौर मंडल के सभी ग्रहों को जोड़ दिया जाय तो भी सूर्य अधिक एक हजार गुणा अधिक रहेगा, सूर्य अनेक गैसों का भंडार है और उसकी आकृति एकदम गोल है। गैसों की परत लगभग 5 से 10 हजार मील तक मोटी है उसके नीचे की परत के बारे में अनुमान है कि काफी ठोस होगी, सूर्य गैसों का भंडार निरंतर जलता रहता है। सूर्य की ज्वाला की लपटें लाखों मील तक फैली रहती हैं। सूर्य प्रतिक्षण अपनी 56 करोड़ 40 लाख टन हाइड्रोजन को जलाकर 56 करोड़ टन हीलियम में परिवर्तित करता रहता है और शेष 40 लाख टन हाईड्रोजन नष्ट हो जाती है।अनुमानतः यह प्रक्रिया पिछले पांच अरब वर्षों से चल रही है।
कोणार्क सूर्य मंदिर, उड़ीसा |
षष्ठी व्रत या छठ पर्व में किसी नदी, तालाब पर आराधना की जाती है। मगध के लोकपर्व का कालान्तर में विकास एवं विस्तार हुआ है। अब वाराणसी से अजगैवीनाथ मंदिर तक गंगा किनारे बिना किसी जाति भेद के और बिना किसी पुरोहित के भक्त सीधे भगवान सूर्य को प्रथम दिन अस्ताचल सूर्य और दूसरे दिन उगते सूर्य के सामने फल-फूल और प्रसाद की डाली निवेदित करते हैं। छठ मैया की आराधना में गाये गये लोकगीत में लोगों की कामना स्पष्ट रूप से सामने आती है, छठ व्रती के साथ औरतें इस प्रकार गाती हैं:-
रुनकी झुनकी बेटी माँगी, वेद पढ़न को दामाद,
छठी मैया प्रातः दर्शन दे हो...!
प्रातः दर्शन देने की कामना के साथ ही बेटे के अलावा बेटी छठी मैया से व्रतधारी मांगते हैं। लोकभाषा के रुनकी झुनकी का अर्थ है कभी रूठने वाली और कभी मान जाने वाली बेटी चाहती हैं। लेकिन दामाद हर हालत में पढ़नेवाला ही मांगते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि बिहार, खासकर प्राचीन मगध के नारियों के मन में वेद और वैदिक साहित्य के प्रति गहरा अनुराग कायम है।
हंडिया सूर्य मंदिर, नवादा |
मगध क्षेत्र के बड़गाँव, देव, उलार, औंगारी, पंडारक और बोधगया में प्राचीन सूर्य मंदिर होने का पुरातात्विक साक्ष्य भी है। बड़गाँव प्राचीन नालंदा खंडहर के क्षेत्र के पास अवस्थित है। यहाँ एक प्राचीन सूर्य मंदिर और तालाब है, इस स्थल पर चैत और कार्तिक महीने में प्रत्येक वर्ष दो बार पाँच लाख से दस लाख की संख्या में भक्त पधारते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब ने कुल 6 सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था, जिसमें मुल्तान का सूर्य मंदिर और एक बड़गाँव का सूर्य मंदिर महत्वपूर्ण है। शाम्ब के सम्बंध में भविष्य पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण और ब्रह्माण्ड होने के बाद शाम्ब रचित शाम्ब पुराण में अंकित है ।
भविष्य पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की एक पत्नी जामवंती का पुत्र शाम्ब रूपवान था शाम्ब को अपने रूप पर गर्व हो गया था और इस दर्प में उसने भगवान नारद का उपहास कर दिया। इस कारण नारद जी कुपित हो गये और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से शाम्ब के सम्बंध में शिकायत की कि शाम्ब गोपियों के साथ जल बिहार करता है। नाराज नारद ने शाम्ब को गोपियों के साथ जल बिहार करते एक पर्वत के ऊपर से दिखाया। यह दृष्य देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने शाम्ब को शाप दे दिया। शाप के कारण शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया और वे दुखी रहने लगे। एक दिन नारद जी से शाम्ब ने प्रार्थना की तब नारद जी ने खुश होकर शाम्ब को मैत्रयवन में बारह वर्षों तक सूर्य आराधना करने का निर्देश दिया। सूर्य की आराधना से शाम्ब रूपवान, गुणवान एवं सूर्य के उपासक हो गये।
बिहार प्रदेश के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर पर देव नामक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थल है। देव का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर एवं पास का सूर्य कुण्ड आस्था का केन्द्र है। मान्यता है कि सातवीं शताब्दी में मगध हर्षवर्धन के अधीन हो गया, उसी काल खंड में इस मंदिर का निर्माण हुआ है। हर्षवर्धन के राज्यादेश में सूर्य, शिव और बुद्ध को समान स्तर का देवता मानकर मंदिर और मूर्ति बनाए गये थे। देव का सूर्य मंदिर स्थापत्य कला का एक विलक्षण नमूना है, बिना किसी जुड़ाई के मानों पत्थरों पर पत्थर सीधे उठाकर रख दिये हों। निर्माण से जुड़े कई विचार हैं लेकिन मान्यता है कि यह मंदिर देव के एक ब्रह्मर्षि राजा के द्वारा निर्मित है। कार्तिक महीने में चार दिनों के छठ मेला में लाखों की संख्या में भक्त पधारते हैं।
बडगांव सूर्य मंदिर, नालंदा |
मगध सम्राट राजा जरासंघ भी वैदिक धर्म मानते थे। महाभारत में लिखा है कि जिस दिन भगवान श्री कृष्ण मगध के राजनगर राजगृह भीम, अर्जुन के साथ पधारे राजा जरासंघ वैदिक रीति से प्रजा के सुख समृद्धि के लिए उपवास में थे। कहा जाता है कि राजा जरासंघ के किसी पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति का नियम शाकद्वीपीय ब्राह्मण मगध क्षेत्र में वैध के रूप में प्रतिष्ठित हुए और अपने प्रभाव से रोगियों, विशेषकर कुष्ठ रोगियों को सूर्योपासना और उन्मादक पदार्थों का वर्जन बताया। सूर्योपासना से कठिन से कठिन रोगों की मुक्ति होते देख अन्य नागरिकों के बीच यह पर्व महत्वपूर्ण हो गया। आज भी कुष्ठ रोग से मुक्ति एवं कंचन शरीर के लिए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है तथा उनकी महिमा में कंचन काया की मांग की जाती है।
सूर्य की मूर्ति का पूजन और तदनुसार सूर्य मंदिरों के निर्माण की परंपरा शनैः शनैः आगे बढ़ी। कुषाण काल में सूर्य पूजा की परंपरा काफी अधिक विकसित हो चुकी थीं। गुप्त सम्राटों के शासन काल में यह परंपरा और आगे बढ़ी। स्कंदगुप्त (455-467 ई.) के शासन काल में बुलंदशहर में एक सूर्य मंदिर भी बनाया गया। इसके अतिरिक्त गुप्त काल में मंदसौर (मालवा) ग्वालियर, इंदौर तथा आश्रमक (बुन्देलखण्ड) में सूर्य मंदिर भी बनाने का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। उस काल की बनी हुई कुछ मूर्तियाँ भी बंगाल में उपलब्ध हैं। जिनसे पता चलता है कि वहाँ भी कुछ सूर्य मंदिर रहे होंगे। 473 ई० में दशपुर/मालवा में रेशम बनाने वालों के एक संघ ने भी एक सूर्य मंदिर बनवाया था, जिसकी जानकारी दशपुर वर्तमान दशोर में लगे एक शिलालेख से मिलती है।
हर्ष के शासनकाल में सूर्य पूजा की परम्परा अपने चरमोत्कर्ष पर थी। उस समय तीन दिन का एक अधिवेशन हुआ था, जिसमें प्रथम दिन महात्मा बुद्ध की मूर्ति प्रतिष्ठित की गयी, दूसरे दिन सूर्य की आराधना की गयी और अंतिम दिन शिव की पूजा की गयी। पुरातात्विक साक्ष्य के आधार पर गया से सात मील दूर पर प्राचीनतम सूर्य मूर्ति अंकित है। उक्त मंदिर एवं दीवार पर अंकित मानव आकृति से सूर्य देव को दो घोड़े के रथ पर सवार दर्शाया गया है। मगध के अन्य स्थानों से प्राप्त सूर्य देव की मूर्तियों में छह और सात घोड़े दर्शाये गये हैं। बोधगया मंदिर की यह मूर्ति आज भी द्रष्टव्य है और विचारणीय है कि शुंगकाल की मूर्ति में मात्र दो घोड़े क्यों ? सिरनामा में प्राप्त सूर्य देव की मूर्ति में मानव आकृति के सूर्यदेव की कलात्मक मूर्ति में छह घोड़े दर्शाये गये हैं।
देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद |
धार्मिक मान्यता है कि सूर्यदेव की छह पत्नियाँ हैं जो छह शक्तियों का संकेत करती हैं। इस कारण ही सूर्य पूजा को षष्ठी व्रत या छठ पूजा कहा जाता है। पुरातात्विक प्रमाण के अनुसार प्राचीनतम सिक्का आहर मुद्रा में सूर्य चक्रमंडल में छह धाराओं को दिखाया गया है। प्रायः प्राचीन सूर्यदेव की मूर्तियों में छह और सात घोड़े होते हैं जो सूर्य के सतरंग किरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे वैज्ञानिकों ने स्वीकारा है।
वर्ष में छह ऋतु सूर्य के कारण होते हैं, उसमें कार्तिक और चैत महीने में ऋतु बदलते ही विभिन्न रोगों और बीमारियों का प्रभाव बढ़ जाता है। मानव सूर्य पूजा करते हैं कि सूर्यदेव मेरी रक्षा करें और शीतलता का त्याग नहीं करें, कार्तिक महीने में ठंड का प्रभाव बढ़ते देख सूर्यदेव ऊर्जा देते रहें। बिहार में खरीफ की खेतों के लिए यह महीना निर्णायक होता है वहीं रबी की खेती एवं साग सब्जी के लिए यह महीना महत्वपूर्ण माना जाता है।
सातवीं शताब्दी में जब हर्षवर्धन मगध के शासक हुए तो एक नया पूजा विधान कायम हुआ और प्रत्येक मंदिर में सूर्य, शिव और बुद्ध की मूर्ति स्थापित की गयी। देव बड़गाँव में प्राचीन सूर्य मंदिर का निर्माण पूर्ण कलात्मक है और कोणार्क के सूर्य मंदिर के स्थापत्य से मेल खाता है। वर्तमान सूर्य मंदिरों में कोणार्क (उड़ीसा) का सूर्य मंदिर अपना विशिष्ट स्थान रखता है। अन्य मंदिरों के समान यह मंदिर भी अनेक बार तोड़-फोड़ का शिकार हुआ है। इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण सम्राट नरसिंह देव प्रथम (1238-1267 ई०) के शासनकाल में हुआ था।
जगन्नाथपुरी से बीस मील उत्तर पूर्व समुद्र तट के समीप स्थित यह मंदिर कलिंग स्थापत्य शैली का बेजोड़ नमूना है। शाम्ब ने इस मंदिर में कोणादित्य के नाम से सूर्य प्रतिमा स्थापित की थी और इसी नाम कोणादित्य से यह मंदिर पुराणों में चर्चित रहा। सम्राट नरसिंहदेव ने इसे नया स्वरूप प्रदान किया। यह मंदिर भारत के प्राचीनतम सूर्य मंदिरों में एक माना गया है। मान्यता है कि इस मंदिर का शिल्पी दैविक शक्ति से युक्त था। मंदिर का निर्माण पूरा कराने के उपरांत वह निकट के समुद्र बंगाल की खाड़ी पर पैदल चलता हुआ आगे बढ़ गया और कुछ ही देर में आँखों से ओझल हो गया। कोणार्क का यह मंदिर 864 फुट लंबे तथा 540 फुट चौड़े आँगन में बना हुआ है। इस रथ में दस-दस फुट ऊँचे बारह पहिए हैं तथा सात घोड़े तेजी से खींचते हुए दिखलाए गये हैं।
छठ पर्व का प्रारम्भ पुरानी संयत से होता है। इस दिन पर्व करने वाले छठ पर्व का नियम पालन करने का व्रत लेते हैं। व्रतधारी पवित्र ढंग से स्नान करके पवित्र ढंग से भोजन बनाते हैं, जिसमें कद्दू की सब्जी होना जरूरी माना जाता है। इस कारण सस्ता त्रिकनेवाला कद्दू इस दिन महंगा हो जाता है। पुरानी संयत के अगले दिन नवहंडा होता है जिसमें नया बर्तन, नया चूल्हा और पर्व के निमित्त तैयार किया गया जलावन का उपयोग होता है। इस दिन राजगृह के पूरब और उत्तर के क्षेत्र में अरवा चावल का भात और पश्चिम दक्षिण क्षेत्र में रसिया से प्रसाद बनता है। पूरी निष्ठा और पवित्रता का पालन करते हुए सभी प्रसाद पाते हैं। शाम में यह आयोजन होता है। छठी मैया सविता के गीत से वातावरण शुद्ध हो जाता है। प्रथम आराधना (अराग) अस्ताचल सूर्यदेव की छठव्रती करते हैं। छठ के गीत गाते नदी, तालाब या जल उपलब्ध स्थान पर सपरिवार उपस्थित होकर फल- फूल, पकवान एवं दूध निवेदित करते हैं। सुबह उदीयमान सूर्य को अरग निवेदित के साथ चार दिवसीय छठव्रत समाप्त होता है।
आलेख
राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
मोबाइल - 8544027230
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