Kanwariya patha: कांवरिया पथ पर सेवा की मिशाल है आसाम_बंगाल कांवड़िया सेवा शिविर, सावान मास में लाखों शिव भक्तों को यहां ठहरकर मिलता है सुकून
कांवरिया पथ पर सेवा की मिशाल है आसाम_बंगाल कांवड़िया सेवा शिविर, सावान मास में लाखों शिव भक्तों को यहां ठहरकर मिलता है सुकून
नवादा लाइव नेटवर्क।
कांवरिया पथ यानी उत्तर वाहिनी गंगा घाट अजगैबी नाथ (सुल्तानगंज, बिहार) से बाबा नगरी देवघर (झारखंड) के बीच करीब 100 किलोमीटर की यात्रा यूं तो सालोभार लोग करते हैं, लेकिन सावन मास का विशेष महत्व होता है। सावान मास बाबा भोले का महीना माना जाता है। ऐसे में लाखों श्रद्धालु इस महीने में सुल्तानगंज से पवित्र गंगा जल लेकर देवघर तक की कांवर यात्रा पर जाते हैं। 100 किलोमीटर की यात्रा नंगे पांव धूप हो या बारिश श्रद्धालु तय करते हैं।
रास्ते में कई स्थाई और कई अस्थाई सेवा शिविर देखने को मिलता है। जहां श्रद्धालुओं को रहने_ठहरने से लेकर भोजन_जलपान आदि निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। इन शिविरों में शामिल है आसाम_बंगाल सेवा शिविर। यह शिविर आपको इनारावरन बाजार के करीब 200 मीटर आगे बाएं ओर कच्ची मार्ग पर मिल जाएगा। इस बड़ा सा शिविर में कांवर यात्रियों के ठहरने का उत्तम प्रबंध, भोजन, पानी, शरबत, शौचालय आदि उपलब्ध रहती है।
2022 में कांवर यात्रा के दौरान इस शिविर को करीब से जानने का मौका मिला। बड़ी सुखद अनुभूति हुई यह जानकर कि कुछ कांवर यात्रियों के द्वारा ही इस शिविर का संचालन किया जा रहा है। वह भी करीब 38 सालों से।
इस शिविर के संचालन के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। कभी सिर्फ कांवर यात्रियों को पानी पिलाने की सेवा मात्र से इस समिति ने काम करना शुरू किया था जो आज विशाल स्वरूप में सेवारत है।
दरअसल हुआ यूं कि साल 1984 में दिनार (पश्चिम बंगाल) के रहने वाले कैलाश चंद झंवर कुछ अन्य साथियों के साथ कांवर यात्रा पर थे। गोड़ीहाड़ी नदी के बाद की यात्रा के दौरान एक डाक बम जाते हुए दिखे। वे पानी की मांग कर रहे थे। आसपास के कुछ दुकानदारों ने नहीं देखा कि डाक बम कुछ मांग रहे हैं। एक दुकानदार की नजर गई तो उन्होंने दौड़ लगाकर डाक बम को पानी पिलाया। इस घटनाक्रम को देखकर कैलाश चंद झंवर को लगा कि इस पथ पर कुछ सेवा की जरूरत है।
देवघर से लौटने के बाद उन्होंने अपने कुछ मित्रों से इस संबंध में बातचीत की। उनको असम के सरभांग के निवासी तारा चंद जी बिहानी, सोहन लाल जी छलानी का साथ मिला। तीनों ने मिलर अगले साल यानी 1985 में गोड़ीहाडी नदी के आगे झरिया धर्मशाला के पास पेड़ के नीचे कांवर यात्रियों को पानी पिलाने से शिविर का शुभारंभ किया। शिविर का नाम दिया गया आसाम_बंगाल सेवा समिति। इस नाम के पीछे का तर्क था कि संस्थापक दोनों राज्यों के थे।
शिविर स्थापना काल की कुछ तस्वीरें_
1985 में पानी पिलाने से शुरू हुआ शिविर से धीरे धीरे लोग जुड़ते गए और यह शिविर बड़ा आकार लेता गया।
2001 तक इसी स्थान पर यह सिलसिला चलता रहा। 2002 में शिविर को इनाराबरण शिफ्ट किया गया। आकार भी बृहत था। आज यह शिविर सावन के महीने में कांवरिया पथ का बड़ा पड़ाव बन गया है। यहां का सेवा भाव और नित्य संध्या काल का आरती भजन श्रद्धालुओं की थकान को मिटा देता है।
रिपोर्ट : कांवरिया पथ से वरुणेंद्र कुमार@रमेश
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