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Election 2024 : राजनीतिक दलों की उपेक्षा से क्षुब्ध हैं नवादा संसदीय क्षेत्र के मतदाता, 20 लाख से अधिक वोटर कर रहे उम्मीदवार के नाम की‌ घोषणा का इंतज़ार


राजनीतिक दलों की उपेक्षा से क्षुब्ध हैं नवादा संसदीय क्षेत्र के मतदाता, 20 लाख से अधिक वोटर कर रहे उम्मीदवार के नाम की‌ घोषणा का इंतज़ार 

नवादा लाइव नेटवर्क।

नवादा लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं के साथ यह कैसा मजाक है कि लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा हो चुकी है, पहले चरण में 19 अप्रैल को ही चुनाव होना है, आज 20 मार्च से नामांकन भी शुरू हो गया है और मतदाता उम्मीदवार का नाम जानने को ही इंतजार कर रहे हैं।

 अबतक किसी भी राजनीतिक दल ने अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा भी नहीं की है। टिकट मिलने की आस लगाए नेतागण तो ऊहापोह में हैं हीं मतदाताओं को भी समझ में नहीं आ रहा कि यह कैसा मज़ाक है।

 स्थानीय उम्मीदवार की मांग को लेकर पहले से क्षुब्ध चल रहे मतदाताओं के अंदर गहरी नाराज़गी देखी जा रही है। स्थानीय नेताओं समेत अन्य संभावित उम्मीदवारों के सामने भी विकट समस्या है कि आखिर वो जनता के पास जाएं तो किस आधार पर या चुनाव प्रचार की तैयारी करें तो कैसे करें? जब किसी को यह तक पता नहीं कि टिकट किसे दिया जाएगा।

 चाहे एन.डी.ए. गठबंधन हो या इंडिया गठबंधन, दोनों तरफ़ हालत एक जैसे हैं। तमाम नेता दिल्ली से लेकर राजधानी पटना अपने अपने राजनीतिक दलों के मुख्यालयों का चक्कर काट रहे हैं मगर कहीं से कोई पक्की सूचना नहीं मिल पा रही है।

 आखिर दलों की ऐसी कौन सी मजबूरी है या फिर उन्होंने नवादा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं को क्या समझ रखा है? वोट देते योग्य और कर्मठ उम्मीदवारों की अनदेखी कर जाति और पार्टी के नाम पर वोट डालने वाले मतदाता भी कहीं ना कहीं इन परिस्थितियों के लिए जिम्मेवार हैं।

 चुनाव के ठीक पहले उम्मीदवार के नाम की घोषणा की जाएगी और एक महीने से भी कम समय में जीत हार का फैसला भी हो जाएगा। जनता भी सारे गिले शिकवे भूलकर केवल पार्टी का‌ सिंबल देखकर वोट दे देंगे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो विकास के मानकों पर पिछड़े नवादा जिले और संसदीय क्षेत्र की उपेक्षा आगे भी की जाती रहेगी।

 यह बात दीगर है कि बिहार की नवादा लोकसभा सीट पर 1952 से लेकर अब तक चुनावी माहौल में बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। पूर्व से भले ही तमाम मुद्दे हवा में तैरते रहें लेकिन चुनाव के दौरान विकास और स्थानीय मुद्दे हर बार फीके पड़ जाते हैं और जातिगत फैक्टर ही अंतत असरकारी साबित होते हैं। चुनावी समीकरण के कारण नवादा लोकसभा सीट पर बीते तीन चुनावों से लगातार एनडीए उम्मीदवार जीत दर्ज कर रहे हैं।

 दरअसल, नवादा में जातिगत समीकरण काफी मायने रखता है और यह बार-बार स्पष्ट हो रहा है। तमाम राजनीतिक दल भी शायद इस बात को भली भाँति समझ चुके हैं। जब तक मतदाता खुद जागरूक हो कर शिक्षित, ईमानदार और कर्मठ उम्मीदवार का चयन नहीं करेंगे तब तक नवादा लोकसभा क्षेत्र की ना तो बदहाली दूर होगी और ना ही इसे राजनीतिक दलों के द्वारा गंभीरता से लिया जाएगा। 

जरूरत है नवादा लोकसभा क्षेत्र में मतदाता इसपर विचार करें। एक महीने से कम समय में भी कोई भी व्यक्ति किसी भी गठबंधन का टिकट लेकर आएंगे और उसमें से एक जीत कर जाएंगे और दूसरा हार कर जाएंगे, जो जीतकर जाएंगे वह तो हमेशा यह कहते रहेंगे कि मुझे नवादा जिला के मतदाताओं ने इसीलिए वोट दिया क्योंकि मैं इस गठबंधन का टिकट लेकर उम्मीदवार बना और जीता। 

कहने का अर्थ है कि वह व्यक्ति नवादा जिला की जनता और मतदाताओं के प्रति कभी आभारी नहीं हो सकता है।

आज तक नवादा जिला की जनता को नहीं पता है कि हमारा दोनों गठबंधन का उम्मीदवार कौन होगा और एक महीने के अंदर वोट डालना है। ऐसे में नवादा के मतदाताओं  को जागरूक होना पड़ेगा और स्थानीय उम्मीदवार पर भरोसा जताना पड़ेगा तभी राजनीतिक दल सोचने को मजबूर होगा और यह विचार करेगा कि मतदाताओं की राय जानना बहुत आवश्यक है।

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